________________
१८ ]
नेमिदूतम्
कृष्ण तर्कालंकार की कृति है । इस काव्य में श्रीराम का सन्देश लंका की अशोक वाटिका स्थित सीता तक पहुँचाने का कार्य चन्द्रमा करता है ।
चन्द्रदूतम्
कुल २६ पद्यों वाले इस काव्य के हैं, जहाँ चन्द्र के माध्यम से दौत्य कर्म प्रकाशित है ।
रचयिता जम्बू कवि विनयप्रभसूरि सम्पादित कराया गया है । यह काव्य
चातकसन्देश
'जर्नल ऑफ द रॉयल एशियाटिक सोसायटी' ( १८८१ ) के 'सूचीपत्र' में इस काव्य का उल्लेख किया गया है । इसके अनुसार १४१ पद्यों वाले अज्ञात कवि की इस कृति में नायिका का सन्देश त्रिवेन्द्रम नरेश तक पहुँचाने का कार्य चातक पक्षी करता है । यद्यपि यह ग्रन्थ अपूर्ण ही प्राप्त है ।
झंझावात
श्री श्रुतिदेव शास्त्री रचित ( १९४२ ) राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत इस काव्य का वर्ण्य विषय, द्वितीय विश्वयुद्ध के समय बलिन स्थित सुभाषचन्द्र बोस द्वारा रात्रि में उत्तर दिशा से आते हुए झंझावात ( बवण्डर ) को रोककर उसके द्वारा अपना सन्देश भारतीयों तक पहुँचाना, है । सम्प्रति यह काव्य 'संस्कृत साहित्य परिषद्', कलकत्ता के पुस्तकालय में हस्तलिखित रूप में उपलब्ध है |
तुलसीदूतम् (सन् १७३० ई० )
कृष्ण-कथा पर आधारित ५५ पद्यों वाले इस काव्य के रचयिता त्रिलोचन कवि हैं । इस काव्य में कृष्ण - विरह - पीडिता एक गोपी ( राधा ) वृन्दावन में प्रवेश कर एक तुलसी- वृक्ष के माध्यम से अपना सन्देश कृष्ण तक पहुँचाती है । यद्यपि यह ग्रन्थ अप्रकाशित है, किन्तु यह काव्य 'संस्कृत साहित्य परिषद्', कलकत्ता के पुस्तकालय में हस्तलिखित रूप में प्राप्य है ।
तुलसीदूतम् ( शक संवत् १७०६ )
प्राच्य वाणी मन्दिर, कलकत्ता के ग्रन्थाङ्क १३७ के ( हस्तलिखित ) रूप में उपलब्ध यह काव्य श्री वैद्यनाथ द्विज की कृति है । इसका वर्ण्य विषय भी पूर्वोक्त 'तुलसीदूत' की तरह है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org