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भूमिका
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चकोरदूतम् ____ आधुनिक काल में लिखे गये गीति-काव्य की परम्परा में बिहार प्रान्त के पं० वागीश झा का 'चकोरदूत' उच्चकोटि का दूतकाव्य है । इस काव्य का उल्लेख प्रो० वनेश्वर पाठक रचित 'प्लवदूत' की भूमिका (पृ० २७ ) में किया गया है । चकोरदूतम्
राम कुमार आचार्य प्रणीत 'संस्कृत के सन्देशकाव्य' ( परिशिष्ट १ ) के अनुसार इस काव्य के कर्ता का नाम कविवासुदेव है । इस अनुपलब्ध काव्य का वर्ण्य-विषय क्या है ? इस सम्बन्ध में स्पष्ट रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। चकोरसन्देश
ओरियण्टल मैन्युस्क्रिप्ट, लाइब्रेरी, मद्रास में 'हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची पत्र' ( भाग २७, संख्या ८४९७ ), एवं तंजौर पैलेस, लाइब्रेरी के 'हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची-पत्र' ( भाग ७, संख्या २८६६ ) में इस काव्य को कवि पेरुसूरि की कृति कहा गया है, किन्तु इस काव्य का वर्ण्य-विषय क्या है ? यह अद्यावधि अज्ञात है। चकोरसन्देश
वेङ्कटकवि लिखित इस काव्य का उल्लेख ओरियण्टल मैन्युस्क्रिप्ट, लाइब्रेरी मैसूर के 'हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची-पत्र' (संख्या २४६ ) में हुआ है । सम्प्रति यह काव्य अप्रकाशित है। चक्रवाकदूतम्
विविध छन्दों में निबद्ध ११२ पद्यों वाले इस काव्य में एक विरहपीडिता राजकुमारी अपना सन्देश अपने प्रेमी तक पहुंचाने के लिए दूत रूप में चक्रवाक पक्षी को नियुक्त करती, है, जो पक्षी प्रेमी का अन्वेषण कर प्रेमी और प्रेमिका को मिला देता है। कवि म्युतनकुङ्ग रचित इस अप्रकाशित दूतकाव्य का उल्लेख 'ओझा अभिनन्दन ग्रन्थ' में जावा के 'हिन्दूसाहित्य के कुछ मुख्य ग्रन्थों का परिचय' नामक लेख में हुआ है। चन्द्रदूतम्
हस्तलिखित रूप में उपलब्ध राम-भक्ति पर आधारित यह काव्य श्री
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