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भूमिका
तथा द्वितीय भाग में १८६ पद्य हैं। इस काव्य में विद्यापुर का राजकुमार एक बार एक यान्त्रिक से प्राप्त एक ऐसे यन्त्र को अपने सिर से स्पर्श करता है जिसके कारण वह अपने देश तथा अपनी प्रिया से बहुत दूर चला जाता है । फलस्वरूप विरह-व्यथा से सन्तप्त वह राजकुमार अपने सन्देशवाहक के रूप में एक ऐसे कोक ( चक्रवाक पक्षी ) को नियुक्त करता है, जो स्वयं रात्रि में प्रिया-विरह से विह्वल रहता है। इसका कारण सम्भवतः एक विरही का दूसरे विरही की दशा से परिचित होना है। इसीलिए राजकुमार ने चक्रवाक पक्षी को अपना सन्देशवाहक नियुक्त किया। इस काव्य के प्रणेता का नाम कवि विष्णुत्राता है। कोकिलदूतम् __ मन्दाक्रान्ता छन्द में निबद्ध इस काव्य के १०० पद्यों में, कृष्ण-विरहपीडिता गोपियों द्वारा अपना सन्देश कृष्ण तक पहुँचाने के लिए कोकिल को दूत बनाकर मथुरा भेजना, वर्णित है । 'कोकिलदूत' के कर्ता कवि हरिदास का समय शक सं० १७७७ है । कोकिल-सन्देश
उदण्ड कवि ( १५ वीं शताब्दी ) कृत इस लघु कृति में प्रिया-विरही एक नायक द्वारा अपना सन्देश केरल स्थित अपनी प्रिया के पास कोकिल द्वारा भेजना वर्णित है। कोकिल-सन्देश
श्री वेंकटाचार्य कृत इस काव्य का वर्ण्य-विषय एक विरही नायक का अपना सन्देश अपनी प्रेयसी तक पहुंचाने के लिए कोकिल को दूत रूप में बनाकर भेजना है । यह काव्य सम्प्रति अप्रकाशित है। कोकिल-सन्देश ___ कवि गुणवर्धन कृत इस काव्य का उल्लेख 'सिलोन ऐण्टिक्वेरी' ( भाग ४, पृ० १११ ) में किया गया है। पूर्वोक्त काव्यों की अपेक्षा इसमें भिन्नता इस बात की है कि इसमें नायिका द्वारा नायक के पास अपना सन्देश पहुंचाने के लिए कोकिल को दूत बनाया गया है । कृष्णदूतम
अड्यार पुस्तकालय की 'हस्तलिखित संस्कृत ग्रन्थों की सूची' (भाग २, संख्या ४ ) के अनुसार 'कृष्णदूत' के कर्ता कवि नसिंह हैं। इस काव्य में
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