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नेमिदूतम्
काकदूतम् __श्री गौर गोपाल शिरोमणि कृत भक्ति-परक इस काव्य में, विरहपीडिता राधा के द्वारा काक ( कोआ) को दूत बनाकर कृष्ण के पास भेजना, वणित है। इसकी विशेष जानकारी के लिए 'बंगीयदूतकाव्येतिहासः' द्रष्टव्य है। काकदूतम्
नाम की समानता होने पर भी इसका वर्ण्य-विषय गौर गोपाल शिरोमणिकृत 'काकदूत' से सर्वथा भिन्न है। नैतिकता की शिक्षा देने के विचार से समाज पर रचे गये व्यङ्गयपरक इस काव्य में कारागार में बन्द एक ऐसे ब्राह्मण की गाथा है, जो काक ( कोआ) को दूत बनाकर अपना सन्देश अपनी प्रेयसी (ब्राह्मणी) के पास भेजता है। किन्तु इसके रचयिता का नाम अज्ञात है ( द्रष्टव्य : कृष्णमाचारिकृत संस्कृत साहित्य का इतिहास )। काकबूतम् __ सहृदयम्, संस्कृत मासिक पत्रिका, मद्रास (भाग २३, पृ० १७३ ) में इस काव्य का उल्लेख किया गया है, जो वस्तुतः पूर्वोक्त दोनों 'काकदूत' से भिन्न तो है, परन्तु यह किसकी रचना है और इसकी कथावस्तु क्या है ? यह सब काल के गर्त में पड़ा हुआ है।
कीरदूतम् ___'कीरदूत' के १०४ पद्यों में कृष्ण-विरह-पीडिता गोपियों के द्वारा मथुरावासी कृष्ण को अपना सन्देश पहुंचाने के निमित्त कीर ( तोता ) को दूत रूप में भेजना इस काव्य का प्रतिपाद्य विषय है । कवि का नाम श्री रामगोपाल है तथा ग्रन्थ अप्रकाशित है, जो श्री हरप्रसाद शास्त्री द्वारा संकलित 'संस्कृत हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची' (भाग १, पृ० ३९, संख्या ६७ ) में अनूदित है। कीरदूतम् __ संस्कृत के सन्देश-काव्य ( राम कुमार आचार्य, परि० २) के अनुसार इसके रचयिता वरदराजाचार्य हैं। शेष अज्ञात है। सम्प्रति इस काव्य की हस्तलिखित प्रति भी अप्राप्त है, किन्तु मैसूर की गुरुपरम्परा में 'कीरदूत' का उल्लेख किया गया है। कोकसन्देश
इस काव्य का विभाजन दो भागों में है -प्रथम भाग में १२० पद्य
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