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अब्बतम्
भूमिका
श्रीकृष्णचन्द्रकी कृति 'अब्ददूतम्' सम्प्रति अप्रकाशित ग्रन्थों की सूची में है । इस काव्य के १४९ पद्यों में श्री राम के द्वारा मलय पर्वत पर विचरण करते हुए आकाश में मेघ को देखकर उनका विह्वल हो जाना तथा अब्द ( मेघ ) को दूत बनाकर सीता के पास अपना सन्देश भेजना इस काव्य का प्रतिपाद्य विषय है ।
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अमरसम्देश
श्री गुस्तोव आपर्ट द्वारा संकलित दक्षिण भारत के निजी पुस्तकालय के 'संस्कृत हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची' ( भाग २, संख्या ७८०५ ) में इस काव्य का उल्लेख मात्र है । किन्तु इसके रचयिता के विषय में वहाँ कुछ भी नहीं कहा गया है ।
उद्धवदूतम्
माधवकवीन्द्र भट्टाचार्य की इस कृति के १४१ श्लोकों में, कृष्ण के द्वारा अपने माता-पिता तथा गोपियों को सान्त्वना देने के निमित्त उद्धव को दूत बनाकर वृन्दावन भेजना " गच्छोद्धव व्रजं सौम्य पित्रोर्नः प्रीतिमवाह । गोपीनां मद्वियोगाधि मतसन्देर्शविमोचय ||" एवं वृन्दावन से एक गोपी का सन्देश लेकर उद्धव का कृष्ण के पास पहुँचना, वर्णित है । इसकी कथावस्तु श्रीमद्भागवत से सम्बद्ध है ।
उद्धवसम्देश
श्री जीवानन्द विद्यासागर द्वारा उनके काव्य-संग्रह के तृतीय भाग के तृतीय संस्करण ( १९८८ में कलकत्ता से प्रकाशित ) के अनुसार रूपगोस्वामी ( १६वीं शताब्दी ) की इस कृति के १३८ पद्यों में, विरह-व्याकुल कृष्ण के द्वारा स्वयं को तथा विरहपीडिता गोपिकाओं को सान्त्वना देने के निमित्त उद्भव को सन्देश वाहक बनाकर वृन्दावन भेजना, वर्णित है । इसकी कथावस्तु कृष्ण-कथा पर आधारित है ।
कविवृतम्
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'कपिदूतम्' की एक खण्डित हस्तलिखित प्रति 'ढाका विश्वविद्यालय' के पुस्तकालय में उपलब्ध है । किन्तु इसके लेखक आदि का नाम अद्यावधि अज्ञात है ।
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