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________________ नेमिदूतम् 'हंसदूत' आदि संदेश-काव्यों को रचकर किया। ___इसी प्रकार तमिल के उदण्ड नामक एक कवि ( १४वीं शताब्दी ) ने मालवार के कालीकट-स्थित जमोरिन के आश्रम में रहकर 'मेघदूत' की शैली का एक गीतिपरक प्रेमकाव्य 'कोकिलसंदेश' का निर्माण किया था। इसी प्रसंग में 'मेघदूत' के अक्षरशः अनुकरण पर लिखा हुआ वामनभट्ट बाण ( १५वीं श० ) का 'हंससंदेश' भी उल्लेखनीय है । इसी श्रेणी के कुछ कम प्रभावोत्पादक संदेश-काव्यों में पूर्ण सरस्वती का 'हंससंदेश', विष्णुत्राता ( १६वीं श० ) का 'कोकसंदेश', वासुदेव कवि ( १७वीं श० ) का 'मगसंदेश' और विनयविजयगणि का 'इन्द्रदूत', तैलंग ब्रजनाथ का 'मनोदूत', भगवद्दत्त का 'मनोदूत' और लक्ष्मीनारायण का 'रथांगदूत' भी इसी कोटि के हैं। ___ संस्कृत में लिखे गये 'दूतकाव्यों' की इस दीर्घ परम्परा के अवलोकन से दूतकाव्यों की लोकप्रियता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। इण्डिया ऑफिस लन्दन के सूचीपत्र में संस्कृत और प्राकृत के अनेक अप्रकाशित 'दूतकाव्यों का उल्लेख देखने को मिलता है। इससे भी दूतकाव्यों की लोकप्रियता की रहस्योद्घाटन होता है। इस प्रकार समस्त दूत-काव्यों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-.) जैनेतर दूत-काव्य और ( २ ) जैन-दूत-काव्य । अकारादि वर्णक्रमानुसार जैनेतर दूतकाव्यों एवं जैन दूतकाव्यों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है जैनेतर दूतकाव्य अमिमदूतम् प्राच्य वाणी मन्दिर, कलकत्ता की हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची के अनुसार 'अनिलदूत' श्री रामदयाल तर्करत्न की कृति है, जो कुछ ही अंशों में प्राप्त है । प्राप्त अंश के आधार पर इसकी कथा-वस्तु - कृष्ण के मथुरा चले जाने पर एक गोपी द्वारा अपनी विरह-व्यथा को कृष्ण के पास पहुंचाने के लिए अनिल ( बायु ) को दूत बनाना - है। १. संस्कृत साहित्य का ( संक्षिप्त ) इतिहास, वाचस्पति गैरोला, पृ० ६०९। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002117
Book TitleNemidutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikram Kavi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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