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________________ नेमिदूतम् । १०५ सम्पयः- मोहभावात्, जगत्समग्रम्; त्वन्मयम्; इव, पश्यन्ती; तद्विरामे; तत्क्षणम्, मनसि, निहितम्, त्वाम्, ध्यायन्ती, च, नयनसलिलोत्पीडरुद्धाबकाशाम्, भित्तावपि, ते, पुरस्ताद्, मूर्तिम्, लिखितामीक्षितुम्, आकांक्षन्ती ।। पश्यन्तीति । मोहभावात् जगत्समग्रं हे राजन् ! इयं राजीमती मूर्छाप्रभावादखिलं जगत् । त्वन्मय मिव भवतः नेमेः रूपं यथा, पश्यन्ती अवलोकयन्ती। तद्विरामे मूर्छावसाने । तत्क्षणं मनसि तन्मुहतं चेतसि । निहितं त्वां ध्यायन्ती स्थापितं भवन्तं नेमिम् इतिभावः, स्मरन्ती। च नयनसलिलोत्पीडरुद्धावकाशा तथा अर्धप्रवाहनिरुद्धस्थानम् [ नयनोः सलिलानि-नयनसलिलानि (ष. तत् . ) तेषामुत्पीड:-नयनसलिलोत्पीडः (१० तत्०) रुद्धः अवकाशो यस्याः सा रुद्धावकाशा ( बहुब्री० ) नयनसलिलोत्पीडेन रुद्धावकाशा-नयनसलिलोत्पीडरुद्धावकाशा ( तृ० तत् ) ताम् ] । भित्तावपि, ते पुरस्ताद् तवाग्रे । मूर्ति लिखितामीक्षितुं स्वप्रतिबिम्बं चित्रितामीक्षितुम्, आकांक्षन्ती वाञ्छन्ती ।। ९८॥ शम्नार्यः- मोहभावात्-मोहवश, जगत्समग्रम्-समस्त जगत् को, त्वन्मयम् -नेमिमय की, इव-तरह, पश्यन्ती-देखती हुई, तद्विरामेमोह के अवसान होने पर, तत्क्षणम्-उसी क्षण, मनसि-मन में, हृदय में, निहितम्-स्थापित, त्वाम्-तुम्हारा नेमिका, ध्यायन्ती-स्मरण करती हुई, ध्यान करती हुई, च-पुन:, नयनसलिलोत्पीडरुद्धावकाशाम-आंसुओं के प्रवाह से रुद्धस्थान वाली, भित्तावपि-दीवाल पर भी, ते-तुम्हारे, पुरस्ताद -आगे, मूर्तिम्-अपना प्रतिबिम्ब, लिखितामीक्षितुम्-बनाने की, बनाने के लिए, आकांक्षन्ती-चाहती हुई ( यह राजीमती-)। अर्थः - मोहवश समस्त जगत् को नेमिमय की तरह देखती हुई, मोह के अवसान होने पर उसी समय हृदय में स्थापित तुम्हारा ध्यान करती हुई पुनः आंसुओं के प्रवाह से रुद्धस्थान बाली दीवाल पर भी तुम्हारे आगे अपना प्रतिबिम्ब बनाने की इच्छा करती हुई ( यह राजीमती-)। अन्तभिन्ना मनसिजशरैर्मीलितक्षो मुहूतं. लब्ध्वा संज्ञामियमथ दशाऽबीक्षमाणातिदीना। शय्योत्संगे नवकिशलयलस्तरे भद्रं लेभे, साह्रीव स्थलकमलिनी न प्रबुद्धा न सुप्ता ॥६॥ १. शर्म' इति पाठान्तरम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002117
Book TitleNemidutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikram Kavi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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