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________________ १०४ ] नेमिदूतम् अन्वयः - अस्याः, प्राक; नवर्गीतवार्ताविनोदैः, या, क्षणम्, इव, आसीत्, त्वत्कृते, तप्तगात्री, ताम्, एव, रात्रिम्, गल्लभागः, विलंघ्य, शय्याबलविगलितैः, विरहजनितैः; उष्णैः, अश्रुभिः, संवत्सरशतसमाम् यापयन्ती। या प्रागस्या इति । अस्याः प्राक् हे राजन् ! राजीमत्याः बाल्यावस्थायाम् । नवर्गीतवार्ताविनोदैः-गीतानि च गायनोद्गातानि वार्ताश्च पुरा भवाः विनोदाश्च ते इत्यर्थः । या क्षणमिव रात्रिः मुहूर्त यथा आसीत् । त्वत्कृते लप्तगात्री त्वदर्थ विरहसन्तप्तदेहा, इयं राजीमती इति शेषः । तामेव रात्रि पूर्वोक्तामेव रजनिम् । गल्लभाग: विलंध्य कपोलप्रदेश अतिक्रम्य । शय्यातलविगलितः तल्पतलपतितैः । विरहजनितैः उष्णः वियोगोत्पन्नः तप्तः । अश्रुभिः संवत्सरशतसमां नेत्राम्बुभिः वर्षशतं यथा, यापयन्ती गमयन्ती ॥ ९७ ॥ शब्दार्थ:-अस्या:-राजीमती का, प्राक-पहिले (पाणिग्रहण के समय से पूर्व ), नवैर्गीतवार्ताविनोदैः-नवीनगीत-वार्तालाप, रजाना युक्त व्यापारों से, या-जो रात्रि, क्षणम्-क्षणभर की, पलभर की, इव-तरह, आसीत्-थी, त्वत्कृते-तुम्हारे द्वारा परित्याग से, तप्तगात्री-सन्तप्त शरीर बाली राजीमती, तामेव-उसी, रात्रिम्-रात को, गल्लभाग:-कपोलप्रदेश का, विलंध्य-अतिक्रमण कर, लाँघकर, शय्यातलविगलितैः-शय्या पर गिरते हुए, विरहजनितैः-वियोग से उत्पन्न, उष्णैः-तप्त, गर्म, अश्रुभिःआँसुओं से, संवत्सरशतसमाम्-सौ वर्षों की तरह, यापयन्ती-व्यतीत करती हुई ( यह-)। अर्थः - (हे राजन ) इस राजीमती का बाल्यकाल में नवीन गीतों लथा वार्ता-विनोद के द्वारा जो रात्रि एक क्षण की तरह थी, तुम्हारे द्वारा किये गये परित्याग के कारण सन्तप्तशरीर वाली वह, उसी रात्रि को कपोल प्रदेश का अतिक्रमणकर के शय्यातल पर गिरते हुए वियोगजनित गर्म अश्रुओं के द्वारा, सौ वर्षों के समान व्यतीत करती हुई ( यह-)। टिप्पणी: -- उक्त श्लोक का सम्बन्ध अगले दो श्लोंको से है। पश्यन्ती त्वन्मयमिव जगन्मोहभावात्समग्रं, ध्यायन्ती त्वां मनसि निहितं तत्क्षणं तद्विराम । मूर्ति भित्तावपि च लिखितामीक्षितुं ते पुरस्ता दाकांक्षन्ती नयनसलिलोत्पीडरुद्धावकाशाम् ॥६८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002117
Book TitleNemidutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikram Kavi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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