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________________ नेमिदूतम् तस्यां पौरा विशदयशसं न श्रियः शारदीना, नाध्यास्यन्ति व्यपगतशुचस्त्वामपि प्रेक्ष्यहंसाः ॥ ८३ ॥ अन्वयः ―― • तस्याम् त्वाम्, विलोक्य, व्यपगतशुचः, पौराः, नः, उद्यद्वालव्यजनम् (इव ), अनिलोलासिकासप्रसूनाः, श्वेतच्छत्रम् ( इव), विकसित - सिताम्भोजभाजः, विशदयशसम् ( इव ), शारदीनाः, हंसाः श्रियः, प्रेक्ष्य, अपि, न, अध्यास्यन्ति । 1 उद्यद्वालव्यजनमिति । तस्यां त्वां विलोक्य व्यपगतशुचः हे नाथ ! तस्यां द्वारिकायां नेमिमवलोक्य नष्टदुःखाः सन्तः । पौराः द्वारिकानगरनिवासिनः । न उद्यद्वालव्यजनम् ( इव ) उद्यन्ती- - तव पार्श्वयोश्चलन्तीर्वालव्यजने — चामरे यस्य स तम् इत्यर्थः ( यथा ) | अनिलोल्लासिकासप्रसूनाः - वायुना नर्तनोद्यतानि कास पुष्पाणि यासु ताः 'अनिलोल्लासिकासप्रसूनाः' । श्वेतच्छत्रम् ( इव ) विकसित सिताम्भोजभाजो श्वेतानि छत्राणि येस्य ( नेमेः ) स तं ( यथा ) प्रफुल्लानि यानि पङ्कजानि तानि भजन्ते यास्ता विकसितसिताम्भोज भाज:', विशदयशसम् ( इव ) शारदीना: हंसाः श्रियः तव निर्मलकीर्तिम् ( यथा ) शरत्काल सम्बन्धिनी राजहंसाः कान्त्यश्च प्रेक्ष्य दृष्ट्वा अपि नाध्या स्यन्ति न स्मरिष्यन्ति ॥ ८३ ॥ [ ८९ शब्दार्थः 11 - में हिलते हुए चामरों हिलते हुए स्वच्छ कास तस्याम् — उस द्वारिका में, त्वाम् - तुमको ( नेमि को ), विलोक्य — देखकरं व्यपगतशुचः शोकरहित होकर, पौराः- द्वारिका के नागरिक, न उद्यद्वालव्यजनम् ( इव ) -- तुम्हारे बगल ( की तरह ), अनिलोल्लासिकासप्रसूनाः - वायु से पुष्पों का समूह, श्वेतछत्रम् ( इव ) - ( तुम्हारे ) श्वेतछत्र ( की तरह ); विकसित सिताम्भोजभाजः - खिले हुए श्वेत कमल समूह ( तथा ) विशदयशसम् ( इव ) - ( तुम्हारे ) स्वच्छ यश ( की तरह ), शारदीना: हंसाः श्रियः - शरत्काल सम्बन्धिनी राजहंसों की शोभा को, प्रेक्ष्य देखकर, अपि भी, नाध्यास्यन्ति - ( उसका ) स्मरण नहीं करेंगे । , Jain Education International arai: 4:1 उस द्वारिका में तुमको देखकर शोकरहित हो उस द्वारिका के निवासी जन, तुम्हारे पार्श्वभाग में डुलाये जाते हुए चामरों ( की तरह ) वायु से कम्पित स्वच्छ कास पुष्पों के समूह, ( तुम्हारे ) श्वेतच्छत्र ( की तरह ) खिले हुए श्वेतकमल समूह ( तथा तुम्हारे ) निर्मल यश ( की तरह ) शरत्कालीन राजहंसो की शोभा को देखकर भी उसका स्मरण नहीं करेंगे । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002117
Book TitleNemidutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVikram Kavi
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1994
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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