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नेमिदूतम्
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आसक्त, संलग्न, वित्तेशानाम्-धनिकों की, यौवनात्-यौवन के अतिरिक्त, अन्यत्-दूसरी, वयः-अवस्था, न-नहीं, अस्ति-होती है, खलु-यह निश्चय का सूचक अव्यय है।
अर्थः - जिस द्वारिका में लोगों के रक्षक कृष्ण के भय से रोग शरीर का स्पर्श नहीं करता, द्वारिकानगरनिवासी पुराणादि कथा प्रसङ्गों में ही मृत्यु की वार्ता का श्रवण करते, याचकों के सभी मनोरथों की पूर्ति होती ( तथा ) प्रणयलीला में आसक्त धनिकों की यौवन के अतिरिक्त दूसरी अवस्था भी नहीं होती है। कर्णे जातिप्रसवममलं केतकं केशपाशे,
कस्तूरीभिः कृतविरचनागल्लयोः पत्रवल्ली। कण्ठे माला ग्रथितकुटजा मण्डनं भावि काम्यं,
सीमन्ते च त्वदुपगमजं यत्र नोपं वधूनाम् ॥ ७१ ॥
अन्वयः -- यत्र, वधूनाम्, कर्णे, अमलम्, जातिप्रसवम्, केशपाशे, केतकम्, गल्लयोः, कस्तूरीभिः, कृतविरचना, पत्रावल्ली, कण्ठे, ग्रथितकुटजा, माला, सीमन्ते, च, त्वदुपगमजम्, नीपम्, काम्यम्, मण्डनम्, भावि । ____ कर्ण जातिप्रसवममलमिति । यत्र वधूनां कर्णे हे नाथ ! यस्यां द्वारिकायां वनितानां श्रोत्रे, अमलं जातिप्रसवं निर्मलं जातिपुष्पविशेषम् । केशपाशे केतकं चूडापाशे केशजालके वा केतकीपुष्पम् । गल्लयोः कस्तूरीभिः कपोलयोः गण्डयोः वा कस्तूरीभिः, कृतविरचना विहितमकर्यादिरूपरचना, पत्रावल्ली पत्रलता। कण्ठे ग्रथितकूटजा माला मेचके ग्रथितानि कुटजपुष्पाणि यस्यां तथाविधामालास्रक । सीमन्ते च केशवेशे च, त्वदुपगमज नीपं नेमिरागमनजन्यं कदम्बम् । काम्यं मण्डनं भावि मनोज्ञं प्रसाधनं भविष्यति ।। ७१ ॥
शब्दार्थः - यत्र-जिस द्वारिका नगरी में, वधूनाम्-वधुओं के, वनिताओं के, कर्णे-कान में, अमलं जातिप्रसवम् - स्वच्छ जाति पुष्प, केशपाशे-वेणियों में, केतकम्-केतकी पुष्प, गल्लयोः-कपोलों पर, कस्तूरीभिः -- कस्तूरी के द्वारा, कृत विरचना-किये गये रूपरचना युक्त, पत्रवल्लीपत्रलता, कण्ठे- गले में, ग्रथितकुटजा-गुंथे हुए कुटजपुष्पों की, मालाहार, सीमन्ते-माँग में, त्पदुपगमजम्-तुम्हारे ( नेमि ) आगमन से उत्पन्न, नीपम्-कदम्बपुष्प, काम्यम्-मनोहर, मण्डनम्-प्रसाधन, भावि-होगा।
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