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नेमिदूतम्
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अन्वयः
अथ, प्रस्थितस्याग्रे, उत्कल्लोलाः, विपुलपुलिना, भद्राभिधाना, सा, सिन्धुः ते नयनविषयम्, यास्यति, या, वातोद्धूतैः शशांकांशुगौरः, सलिलै : भुवि स्रोतोमूर्त्या परिणताम्, रन्तिदेवस्य कीर्तिम्, हसति ।
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उत्कल्लोलेति । अथ प्रस्थितस्याग्रे अनन्तरं प्रवृत्तस्याग्रे उत्कल्लोला विपुलपुलिना ऊर्ध्वल हर्यः पृथुलतटेन् । भद्राभिधाना सा सिन्धुः भद्राख्या नदी । ते नयनविषयं यास्यति तब नेमेः दृग्गोचरं भविष्यति । या वातोद्धूतैः शशांकां गौरैः सा भद्रा वातेनोद्भूतानि उच्छलितानि वातोद्धूतानि तैः चन्द्रज्योत्स्नाधवलैः । सलिलै : जलैः, भुवि स्रोतोमूर्त्या अवनौ नदीरूपेण | परिणतां रन्तिदेवस्य कीर्ति हसति परिवर्तिताम् एतन्नामकस्य दशपुरनरेशस्य यशः तिरस्करोति ।। ४९ ।।
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शब्दार्थः अथ - इसके बाद, प्रस्थितस्याग्रे – आगे बढ़ने पर सामने ( पहिले ), उत्कल्लोला:- तीव्रलहर से युक्त, विपुलपुलिना - चौड़ी तटवाली, भद्राभिधाना - भद्रा नामक सा सिन्धुः - वह नदी ते तुम्हारे, नयनविषयम् - नयन का विषय, यास्यति - होगा, या - - जो ( भद्रा नामक नदी ), वातोद्धूतैः - वायु से कम्पित होकर, शशांकांशुगौरैः - चन्द्रमा की ज्योत्स्ना की तरह धवल, सलिलै - जल से, भुवि - पृथ्वी पर स्रोतोमूर्त्या - नदी रूप से, परिणताम् — परिणत हो, रन्तिदेवस्य - इस नाम के दशपुर के राजा के, कीर्तिम् - यश को, हसति - तिरस्कृत करती है ।
अर्थः इसके बाद, आगे बढ़ने पर सामने तीव्र-लहर से युक्त चौड़ी तट वाली भद्रा नामक वह नदी तुम्हारे नयन का विषय होगा, जो वायु से कम्पित होकर चन्द्रज्योत्स्ना की तरह स्वच्छ जल के द्वारा पृथ्वी पर नदी रूप में परिणत होकर रन्तिदेव नामक दशपुर के राजा के यश को तिरस्कृत करती है |
टिप्पणी सिन्धु – कुछ लोगों के अनुसार सिन्धु नामक नदी स्वीकार की गई है, किन्तु 'मल्लिनाथ' के अनुसार 'सिन्धु नाम नदी तु कुत्रापि नास्ति ' । भद्राभिधाना - 'भद्रा' का अर्थ स्वर्ग गङ्गा से है, अर्थात् स्वर्ग- गङ्गा की तरह भद्रा नामक सिन्धु नदी । रन्तिदेव :- प्राचीन समय में भरतवंशोत्पन्न संस्कृति के पुत्र ' रन्तिदेव' थे । ये दशपुर के राजा थे तथा बहुत बड़े याज्ञिक, दानी एव प्रतापी थे । इन्होंने ही कबूतर की प्राणरक्षा के लिए अपना मांस काटकर बाज को दिया था ।
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