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________________ गाथासप्तशती एक बार टूटा हुआ प्रेम जब किसी प्रकार जुड़ जाता है, तब उसके पश्चात् फिर कोई प्रत्यक्ष त्रुटि हो जाने पर वह वैसा ही नीरस हो जाता है, जैसे तपाकर ठंड़ा किया हुआ जल ।। ५३ ।। १४ वज्जवडणाइरिक्कं पइणो सोऊण सिज्जिणीघोसं । पुसिआई करिमरिए सरिसवन्दीणं पि णअणाई ॥ ५४ ॥ [ वज्रपतनातिरिक्तं पत्युः श्रुत्वा शिञ्जिनीघोषम् । प्रोञ्छितानि बन्द्या सदृशबन्दीनामपि नयनानि ॥ ] वज्रपात से भी घोर पति की प्रत्यंचा की टंकार सुनकर बन्दिनी ने अपने समान अन्य महिलाओं को भी आँखें पोंछ दीं ।। ५४ ।! सहद्द सहइ त्ति तह तेण रामिआ सुरअदुव्विअद्वेण । पम्पाअसिरीसाइँ वजह से जाआई अंगाई ॥ ५५ ॥ [ सहते सहत इति तथा तेन रमिता सुरतदुर्विदग्धेन । प्रम्लानशिरीषाणीव यथास्या जातान्यङ्गानि ॥ ] नौसिखिये ने बेचारी को बचा-बचा कर भी इतनी निर्दयता से रमण किया कि उसके सम्पूर्ण अंग मुरझाये शिरीष पुष्प के समान शिथिल हो गये ।। ५५ ।। अगणिअसेसजुआणा वालअ वोलीणलोअमज्जाआ । अह सा भमइ दिसामुहपसारिअच्छी तुह कएण ॥ ५६ ॥ [ अगणिताशेषयुवा बालक व्यतिक्रान्तलोकमर्यादा | अथ सा भ्रमति दिशा मुखप्रसारिताक्षी तव कृतेन ॥ ] बालक ! तुम्हारे लिये अनेक नवयुवकों की परवाह न करने वाली वह बाला लोक-लज्जा को तिलांजलि देकर सब दिशाओं में आँखें पसारे भटक रही है ।। ५६ ।। करिमरि अआलगज्जिरजलआसणिपडनपडिरवो एसो । पइणो धणुरवकङि खरि रोमञ्चं कि मुहा वहसि ॥५७॥ [ बन्दि अकालगजनशीलजलदाशनिपतनप्रतिरव एषः । पत्युर्धन् रवाकाङ्क्षणशीले रोमाञ्चं कि मुधा वहसि ॥ ] बन्दिनी ! पति के धनुष की टंकार की कल्पना से व्यर्थ पुलकित न हो जाओ, यह अकाल मेघ से गिरने वाले वज्र की प्रतिध्वनि है ।। ५७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002116
Book TitleGathasaptashati
Original Sutra AuthorMahakavihal
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size9 MB
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