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________________ गाथासप्तशती उपयुक्त विमर्श के अनुसार अनुवादक को इस गाथा की संस्कृतच्छाया 'वज्जालग्ग' से प्राप्त हुई है । 'वज्जालग्ग' में प्राकृत पाठ इस प्रकार है : तुगो थिरो विसालो जो रइओ माणपव्वओ तोए । सो दइयदिठ्ठिवज्जासणिस्स घायं चिय ण पत्तो ॥ यह भिन्न पाठ की संस्कृतच्छाया के प्रस्तुत गाथा का वास्तविक अर्थ कैसे दे सकती है ? व्याख्येय गाथा की विशुद्ध संस्कुतच्छाया यह है : तुङ्ग स्थिरो विशालो यः सखि! मे मानपर्वतो रचितः । स दयित दृष्टिवज्राशने_तेऽपि न प्रभूतः ॥ गाथार्थ-हे सखी! ( तुम्हारे द्वारा ) मेरा जो तुग स्थिर और विशाल मानरूपी पर्वत बनाया गया था वह प्रिय के दृष्टिरूपी वज्र के आघात (प्रहार ) के लिए भी पर्याप्त नहीं था। सखी ने बहुत प्रयत्नपूर्वक नायिका से मान का अभिनय करवाया था किन्तु वह नायक की दृष्टि पड़ने के पहले ही भग्न हो गया। ७२-पच्चक्खमंतुकारअ. (?) जह चुंबसि मे इये हमकवोले। ता भज्म पिअसहीए विसेसओ कीस तण्हाओ॥ ९३२॥ प्रत्यक्षमन्युकारक यदि चुम्बसि मे इमौ हतकपोलौ । ततो मम प्रियसख्या विशेषकः कस्मात् तृष्णाः (?)| हे प्रत्यक्ष अपराध करने वाले ! जब तुम मेरे इन अभागे गालों को चूमते हो तो मेरी प्रिय सखी का गाल गीला कैसे हो गया ?" "विमर्श-गाथा में "विसेसओ कीस तण्हाओ' का प्रयोग प्रसंगतः नहीं जमता । इसकी छाया 'विशेषकः कस्मात् तृष्णाः' जैसी ही सम्भव है, जिसका अर्थ कुछ संगत नहीं बैठता,अतः प्रस्तुत में कुछ परिवर्तन करके अर्थ बैठाया गया है, जैसा श्री जोगलेकर ने भी किया है।" उपर्युक्त अनुवाद और विमर्श के अनुसार गाथा का संगत अर्थ नहीं लगता है । मराठी अनुवादक श्री जोगलेकर ने भी मूलपाठ में परिवर्तन करके इसका अर्थ देने का प्रयत्न किया है । अतः प्रस्तुत अनुवाद की युक्तता अथवा अयुक्तता के सम्बन्ध में कुछ लिखना निरर्थक है। गाथा में प्रयुक्त 'तण्हाओ' देशी शब्द तण्णाओ या तण्णायो के पाठस्खलन का परिणाम है । तण्णाओ का अर्थ है१-बहुलाधिकार के कारण यलोप वैकल्पिक है। वसुदेवहिंडी में य, अ और ओ के स्थान पर बहुशः 'त' की प्रविष्टि दृष्टिगत होती है, जैसे वातू ( वाऊ = वायुः) विवातो ( विवाओ- विवादः) तातो (ताओ = ताः) इत्यादि । यह प्रवृत्ति पैशाची की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.:.
SR No.002116
Book TitleGathasaptashati
Original Sutra AuthorMahakavihal
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size9 MB
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