SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्थनिरूपण अनुवादक ने परिहासमान विमुखे (परिहास माण विमुहे) का अर्थ यह दियाहै-"परिहास करने पर विमुख हो जाती है।" इस अर्थ में मान शब्द का उपयोग नहीं किया गया है ।। ___ गाथा में मानिनी नायिका का वर्णन है । नायक नायिका के वास्तविक मान को परिहास बताकर उसे अनुकूल करने का वैदग्ध्यपूर्ण प्रयास कर रहा है । 'परिहासमानविमुखे' नायिका का सम्बोधन है। उसका अर्थ है-परिहास के रूप में किए गये मान के कारण मुख फेर लेने वाली ( परिहासम्मि जो माणो तेण विवरीअं मुहं जीए)। अतः उत्तरार्ध का अर्थ यों करें । हे परिहास (हंसी) में (झूठा ) मान करके मुंह फेर लेने वाली विशाल नेत्रे ! तुम मेरा मन दुखी कर रही हो। ६७-अइ पोणत्थण उत्थंभिआणणे ! सुणसु सुणसु मह वअणं । अथिरम्मि जुज्जइण जोव्वणम्मि माणो पिए काउं ॥९१८॥ अयि पोनस्तनि ! उत्तम्भितानने शृणु शृणु मम वचनम् । अस्थिरे युज्यते न यौवने मानः प्रिये कर्तुम् ॥ " हे पीनस्तनि ! उन्मुखि ! सुतनु ! मेरा वचन सुन, यौवन स्थिर नहीं है, अतः प्रिय के प्रति मान करना ठीक नहीं है।" पीणत्थण उत्थंमिआणणे की संस्कृतच्छाया 'पीनस्तनोत्तम्भितानने' होगी और गाथा का अर्थ यह होगा = अरी! पीनस्तनों के कारण उत्तम्भितानने ! ( ऊंचे और पुष्ट स्तनों के कारण जिसका मुंह ऊपर ही रहता है अर्थात् जो स्तनों को ऊँचाई के कारण नीचे मुंह करके देख भी नहीं सकती। ) सुनो, मेरी बात सुनो, प्रिये ! अस्थिर यौवन में मान करना उचित नहीं है । ६८-तरलच्छि ! चंदवअणे! थोरत्थणि ! करिअरोरु! तणुमो । दीहा ण समपइ सिसिरजामिणी, कह णुदे माणो ॥९१९॥ - तरलाक्षि ! चन्द्रवदने ! स्तोकस्तनि ! करिवरोरु ! तनुमध्ये ॥ दीर्घा न समाप्यते शिशिरयामिनी कथं नु ते मानः ॥ " हे तरल आँखों वाली, चन्द्रमुखि ! थोड़े स्तनों वाली, हाथी के सूड़ के सदृश ऊरु वाली एवं क्षीण कटि वाली ! लम्बी यह शिशिर की रात नहीं बीत रही है, तेरा मान कैसा है।" 'थोरत्थणि' और 'करिअरोरु' की संस्कृतच्छाया अशुद्ध है। 'थोर' स्थूल का प्राकृत रूप है।' १. द्रष्टव्य स्थूले लोरः प्रा० व्या० १/२५५ सेवादी वा , , २/९९ For Private & Personal Use Only Jain Education in www.jainelibrary.org.
SR No.002116
Book TitleGathasaptashati
Original Sutra AuthorMahakavihal
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy