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________________ अर्थनिरूपण "तुझे शिक्षा देती हुई मैंने .... . ..." अत्यन्त उष्ण श्वास के कारण परिस्खलित होते हुये विषमाक्षर पदों को नहीं सुना (?)" इसकी संस्कृतच्छाया शुद्ध नहीं है अनुवाद भी खंडित है । अनुवादक ने उस पर स्वयं प्रश्नचिह्न लगाया है। अप्पाहिआइ 'का अर्थ अशिक्षितानि' = नहीं, अपितु 'अध्यापितानि' ( पढ़ाये गये ) है यह पदानि का विशेषण है। गाथा का अन्वय इस प्रकार होगा : तेन यानि अत्युष्ण विषमाक्षर परिस्खलत्पदानि तव अध्यापितानि तानि मया न ज्ञातानि । नायिका नायक को जिस गुप्त प्रणयिनी से गद्गद् स्वरों में बातें करते देख चुकी है उसी को यह आभास करा रही है कि तुम दोनों का अनुचित प्रेम मुझसे छिपा नहीं है । मैं उसे तुमसे बातें करते स्वयं देख चुकी हूं, केवल वे शब्द नहीं समझ सकी हूँ जिनके अक्षर अत्युष्ण श्वास से टूटते जा रहे थे। अर्थ- उसने ( नायक ने ) अत्युष्ण श्वासों से परिस्खलित हो जाने के कारण विषमाक्षरों वाले जिन पदों ( शब्दों) को तुम्हें पढ़ाया था उसे मैं नहीं जान पाई। __ 'नहीं जान पाई ।' में विपरीत लक्षणा है। उसका अर्थ है-जान गई हैं। 'अध्यापितानि' में जो व्यंग्यपूर्ण वक्र वचन विन्यास है वह नायक-द्वारा गुप्त प्रणयिनी को प्रेम का पाठ पढ़ाने की दिशा में स्पष्ट इंगित करता है । अत्युष्ण श्वास से पदों के अक्षरों का स्खलित और विषम हो जाना नायिका के प्रति नायक की अनुरक्ति का साधक है । ४८-णवलअ पहरुत्तत्थाएं तं कसं हलिअवहुआए । जं अज्ज वि जुवइजणो घरे घरे सिक्खिउं महइ ८५६ ॥ पतिनामकप्रश्नपूर्वकप्रहारतुष्ट्या तत्कृतं किमपि हलिकस्नुषया। यदद्यापि युवतिजनो गृहे गृहे शिक्षितु भ्रमति ।। इसकी संस्कृतच्छाया यह होगी :पतिनामक प्रश्नपूर्वक प्रहारोत्त्रस्तया तत्कृतं हलिकवध्वा । यदद्यापि युवतिजनो गृहे गृहे शिक्षितु काँक्षति ॥ अनुवादक ने 'उत्तत्थाए के स्थान पर तुट्ठाए' पाठ स्वीकार किया है । गाथा में हलवाहे की वधू के सत्यरक्षण और साहस का वर्णन है। प्राचीन काल में एक व्रत प्रचलित था, जिसमें स्त्रियों को पूछने पर अपने पति का नाम बताना पड़ता था। यद्यपि स्त्रियाँ पति का नाम नहीं लेती हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002116
Book TitleGathasaptashati
Original Sutra AuthorMahakavihal
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size9 MB
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