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गाथास्सप्तशती है। यदि पत्नी का प्रवासी पति से प्रेम नहीं था तो विरह में मुखमालिन्य का कोई प्रश्न नहीं है । अतः अनुवाद का उक्त उद्धृत अंश आपत्तिजनक है।
गाथा का आशय यह है कि अभ्यागत के स्वागत की औपचारिकता का निर्वाह करने के लिये जब पड़ोसिन ने प्रवास से लौट नायक को गले लगा लिया तब पति के आ जाने पर भी विरहिणी बहू का मुख काला पड़ गया । ( अर्थात् पड़ोसिन से पति के प्रणय की आशंका से वह उदास हो गई । )
इस अर्थस्वरूप में 'मुंह काला पड़ गया या काला हो गया' से यह ध्वनि निकलती है कि संयोग सुख की आशा से पत्नी का जो मुंह प्रसन्न हो गया था वह उसके आ जाने पर भी उदास हो गया। ४६-सो गागओ त्ति पेच्छह परिहासुल्लाविरोए दूईए ।
णूमंतीअ पहरिसो ओसट्टइ गंडपासेसु ॥ ८५० ॥ स नागत इति प्रेक्षध्वं परिहासोल्लापिन्या दूत्याः ।
अनुमानयन्त्याः प्रहर्षोऽवशिष्यते गण्डपाशयोः॥ " देखो, वह नहीं आया-परिहास पूर्वक कहती हुई दूती के गालों में प्रहर्ष दौड़ आया"
उपयुक्त संक्षिप्त अनुवाद तो ठीक है, परन्तु गाथा की संस्कृतच्छाया अशुद्ध है । शुद्ध संस्कृत-रूपान्तरण यों होगा :
स नागत इति प्रेक्षध्वं परिहासोल्लापशीलायाः इत्याः । प्रच्छादयन्त्याः प्रहर्षः प्रसरति गण्डपाशयोः ।। णम क्रिया का अर्थ आच्छन्न करना है और ओसट्ट का अर्थ है फैलना (प्रसरण )।
नायिका ने नायक को बुलाने के लिये जिस दूती को भेजा था वह उसे लेकर लौट आई है । वह नायिका के पास पहले पहुँच कर परिहास करती हुई कह रही है "नायक तो मेरे साथ नहीं आया है" परन्तु छिपाने पर भी उसके ( दूती के ) कपोलों पर हर्ष फैल गया है । ४७-अप्पाहिआइ तुह तेण जाइ ताई मए ण मुणिआइ ।
अच्चुण्हस्सास परिक्खलंतविसमक्खर पआई ॥ ८५३ ॥ अशिक्षितायास्तव तेन यानि तानि मया न ज्ञातानि । अत्युष्णश्वास परिस्खलद्विषमाक्षर पदानि ।।
१-पाइअ सद्दमहण्णवो
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