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अनिरूपण
३७ प्राकृत-शब्द-कोशों में बलामोडिअ और बलामोडि शब्दों को देशी शब्द शिखा गया है । वस्तुतः ये संस्कृत के दो पृथक्-पृथक् पद हैं जिन्हें भूल से एक एक पद समझ लिया गया है । 'बला' तो स्पष्ट संस्कृत बलात् का पंचम्यन्त प्राकृत रूप है।
_ 'आमोडि' आमोट्य (आ+ मुट+ णिच् + ल्यप् = त्वा) का अपभ्रंश-प्रभावित रूप है । अपभ्रंश में क्त्वा के स्थान पर इ का विधान है। इसी प्रकार मोडि शब्द भी निष्पन्न होगा।
'बलामोडिअ' में बला तो पूर्ववत् पंचम्यन्त बलात् शब्द ही है । 'आमोडिअ' आमोट्य (आ० मुट् + णिच् + ल्यप् = क्त्वा) का शौरसेनी-रूप है । शौरसेनी में क्त्वा के अर्थ में इअ या इय का प्रयोग होता है । यहाँ मोडिअ शब्द भी बनेगा। ४१. मह पइणा थणजुअले पत्तं लिहि ति गविआ कोस ? ।
आलिहइ महं पि पिओ जइ से कंपो च्चिअ ण होइ ॥२४॥ मम पत्या स्तनयुगले पत्रं लिखितमिति गर्विता कस्मात् ? । आलिखति ममापि प्रियो यदि तस्याः कम्प एव न भवति ।
उपयुक्त संस्कृतच्छाया में तस्याः के स्थान पर तस्य होना चाहिये । यह अन्य तरुणी के प्रति नायिका का कथन है। वह कहती है___यदि पति ने तेरे स्तनों पर पत्ररचना कर दी है तो तू गर्व क्यों कर रही है ? यदि कम्पन न हो जाये तो मेरा पति भी वैसी पत्ररचना कर सकता है।
इस कथन द्वारा नायिका यह व्यक्त करना चाहती है कि सफल पत्ररचना से तुझे गर्वित न होकर लज्जा से डूब मरना चाहिये। यदि पति का तेरे प्रति प्रगाढ़ प्रणय होता तो वह निरतिशय उद्दीपक पीनोन्नत पयोधरों पर पत्ररचना कर ही न पाता । प्रणयोद्वेलन के कारण उक्त कर्म में अवश्य स्खलन हो जाता। तेरे लावण्य में तल्लीन न होकर पति का पत्ररचना में रम जाना दुर्भाग्य का सूचक है । देखो, एक मैं भी हूँ। मेरा पति पत्ररचना शिल्प में पूर्ण पटु है। परन्तु वह जब पत्ररचना करने लगता है तब पयोधरों का स्पर्श होते ही उसके हाथ कांपने लगते हैं । वह तेरे पति के समान जड़ चित्रकार नहीं है, वह एक निश्छल एवं भावुक प्रणयी है । ४२. जंपीभ मंगलवासणाए पत्थाणपढमदिअहम्मि ।
वाहसलिलं ण चिटुइ तं चिअ विरहे रुवंतीए ॥ ३१॥ १. क्त्व इ-इउ-इवि-अवयः-प्राकृतव्याकरण ४/४३९ २. क्त्व इयदूणी-प्राकृतव्याकरण ४/२७१
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