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अर्थनिरूपण
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पथिक स्वप्न में देख रहा है कि उसकी मानिनी प्रिया शय्या पर उसकी ओर पीठ करके सोई हुई है । अतः वह उससे करवट बदल कर अपनी ओर मुँह करने की प्रार्थना कर रहा है ।
'समपिहिइ' सम् उपसर्गपूर्वक आप् धातु का भविष्यत्कालिक प्राकृत रूप है । संस्कृत में इसका रूप ' समाप्स्यसि ( समाप्त करेगी या समाप्त करेगा ) है | गाथा का अन्वय इस प्रकार करें तो अर्थ स्पष्ट झलकने लगेगा
प्रवासी कठिनहृदय: ( अस्तीति शेष: ) विरहकुशिता वराकी आसन्नग्रीष्मपरिणामानि दिनानि कथं समाप्स्यति ( इति न जानीमः ) ।
गाथार्थ - प्रवासी ( नायक ) का हृदय कठोर है । विरह से दुबली वह बेचारी ( विरहिणी नायिका ) आसन्नवर्ती ग्रीष्म के दीर्घ दिनों को कैसे समाप्त करेगी ( बितायेगी ) - यह समझ में नहीं आता है ।
यह नायिका की सहेली की उक्ति है ।
कप्पासं कुप्पासंतरम्मि तह वित्तमित्ति भणिऊण ।
अत्ता ! बलाहिरेणं थणाण मह कारिआस्था ।। ८०५ ।। [ कर्पासं कूर्पासान्तरे त्वया क्षिप्तमिति भणित्वा । श्वश्रु ! बलाभीरेण स्तनानां मम कारितावस्था ॥ ]
"चोली के अन्दर तूने ( मेरा ) कपास रख लिया है - यह कह कर जबर अहीर ने मेरे स्तनों की यह हालत कर डाली है ।"
इस गाथा की संस्कृतच्छाया का उत्तरार्ध यों होना चाहियेश्वश्रु ! बलादाभीरेण स्तनयोर्मम कारितावस्था ।
अनुवादक द्वारा स्वीकृत संस्कृतच्छाया में स्तनों का बहुवचन में पाठ तो अनुचित ही है बल शब्द में विद्यमान पंचमी विभक्ति की भी उपेक्षा कर दी गई है । प्राकृत में ङसि ( पंचमी एकवचन, विभक्ति में 'बल' का रूप 'बला' होता है 'बला' और 'अहिरेणं' में सन्धि होने पर 'बलाहिरेणं' पद बनेगा । 'बल' शब्द का अर्थं बलवान् ( जबर ) नहीं है । यहाँ उसका अर्थ है बलपूर्वक ।
" कारितावस्था' में विपरीत लक्षणा है । 'अहीर के द्वारा बलपूर्वक मेरे स्तनों की दशा ( अवस्था ) बना दी गई है ।" इस वाक्य का अर्थ है -- अहीर के द्वारा मेरे स्तनों की दशा बिगाड़ दी गई है ।
'मेरे स्तनों की यह अवस्था कर डालो है ।' यह अर्थ उचित नहीं है क्योंकि मूल में 'यह' का अर्थ देने वाला सर्वनाम नहीं है ।
३५ - गाइउ पंचरवारिम्भरोउ, चत्तारि पक्कलवइल्ला । संपण्णं वालावल्लरअं सेवा सिवं कुणउ ॥। ८०६ ॥ *" गाथार्थ ठीक नहीं लगता है ( वेबर ) । "
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