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________________ गाथासप्तशती संभव है । प्राकृत में समस्त पदों का पूर्वनिपात और परनिपात संस्कृत के समान निश्चित नहीं है। कभी-कभी उसका व्यत्यय भी हो जाता है। इस दृष्टि से 'सिणरससेएण' को 'रससेअसिणण' ( रस के सेक के ग्रास अर्थात् भक्षण से) के अर्थ में भी ले सकते हैं। 'सिण को' थिण का लिपिभ्रष्ट रूप भी माना जा सकता है । थिण शब्द थीण (स्त्यान - संचित किये गये ) के इकार के ह्रस्वीकरण का परिणाम है। इस दृष्टि से (स्त्यानेन संचितेन रससेकेन) संचित रस-सेक से यह अर्थ होगा। ___ 'आसाइयरससेओ' का संस्कृत रूपान्तर कई प्रकार से संभव है१. आस्वादितरससेकः= आस्वादितो अनुभूतो रसस्य वीर्यस्य सेको निष्यन्दो येन अर्थात् जिन ने शुक्रनिषेक का आस्वादन किया है । २. आसादितरसश्वेतः = आसादितेन प्राप्तेन रसेन अनन्देन श्वेतः प्रोज्ज्वलः दीप्तिमान्-मिले हुये आनन्द से दीप्तियुक्त । ३. आसादितरसश्रेयाः - आसादितेन लब्धेन रसेन वीर्येण श्रेयो मङ्गलं यस्य प्राप्त हुये वीर्यपात से जिसका कल्याण होता है। गाथार्थ-निश्चय ही वह आग अन्य है जो अपने भीतर रससेक (जलसेचन) होने से कान्तिहीन हो जाती है, स्नेह ( अनुराग और तैलादि स्निग्ध पदार्थ ) में उत्पन्न आग रससेक ( वीर्यक्षरण ) का स्वाद लेती है ( आनन्द लेती है, बुझती नहीं है)। अथवा स्नेह में उत्पन्न आग विशेषतया उपलब्ध रस-निषेक ( वीर्य-निषेक ) से और दीप्तिमान् हो उठती है । अथवा स्नेह में उत्पन्न आग विशेष रूप से ऐसी है कि प्राप्त हुये रससेक ( वीर्य निषेक ) से उसका श्रेय ( मंगल ) होता है ( पुत्र के रूप में )। - स्नेह शब्द में श्लेष है। वह अनुराग के साथ-साथ तैलादि स्निग्ध पदार्थों का भी अर्थ देता है। स्निग्धपदार्थों में लगी आग पानी पड़ने पर सरलतया नहीं बुझती है, एक बार और भभक उटती है । अंतोणिहुअटिअपरिअणाइ ओरुद्धदारणअणाइ । गिम्हे घरटुघग्घररवेण घोरंति घराइं ॥ ७९४ ॥ [ अन्तर्निभृतस्थितपरिजनान्यवरुद्धदारनयनानि । ग्रीष्मे घरट्टघर्घर रवेण घुरघुरन्तीव गृहाणि ॥] "गर्मी में भीतर घर के लोग चुपचाप पड़े हैं, पलियों की आंखें मूंद रखी हैं, चक्की की घर्घर आवाज से मानो घर ही चिल्ला रहे हैं।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002116
Book TitleGathasaptashati
Original Sutra AuthorMahakavihal
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size9 MB
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