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संस्कृतच्छाया
शब्दार्थ
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कठिनरवरसीरप्रेरणफले इव प्रस्तरविनिर्गताग्निकणे । _arraavesधमवृषभा अपि सुखेन व्रजन्ति ॥ धवलापावतपथेऽधमवृषभा
गाथासप्तशत
सीर हल
R
धवलापावृत पथे = धवलेन श्रेष्ठवृषभेण अपावृते प्रकाशिते ( अप + आ + वृ = ढकना + क्ते ) पथि मार्गे श्रेष्ठ बैल के द्वारा प्रकटीकृत
मार्ग पर ।
कसर = अधम बैल
जो कठिन एवं
गाथार्थ - जिस पर पत्थर से अग्नि के कण निकलते थे, प्रखर हल के कर्षण का फल ( परिणाम ) है, श्रेष्ठ वृषभ के द्वारा अपावृत किये गये ( प्रकाशित किये गये ) उस मार्ग पर अधम बैल भी सुख से चलते हैं |
गाथा में अन्योक्ति है ।
छतम्मि जेण रमिया, ताओ किर तस्स चेअ मंदेह ।
जद्द तीअ इमं णिसुयं, फ़ुट्टइ हिययं हरिसयाए ॥ ७९१ ।।
संस्कृतच्छाया -रहित इस गाथा का अनुवाद इस प्रकार किया गया है" ताप - खेत में जिससे रमण किया है उसी का ताप मन्द पड़ रहा है, यदि उसने सुन लिया है सो उसका हृदय हर्ष से फूट पड़ेगा ( ? ) 1"
इस अनुवाद का आशय स्पष्ट नहीं है । अनुवादक ने स्वयं इस पर प्रश्नचिहन लगाया है । अत: इसकी प्रामाणिकता के सम्बन्ध में कुछ भी लिखना व्यर्थ हैं ।
गाथा की संस्कृतच्छाया यों होगी
क्षेत्रे येन रमिता तापः किल तस्यैव मन्दायते ? यदि तयेदं निश्रुतं स्फुटति हृदयं हर्षतया ॥
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इसके पूर्वार्ध में काकु से आक्षिप्त प्रश्न विद्यमान है ( जैसे तुम जाओगे ? ) वर्तमान कालिक क्रिया 'फुट्टइ' व्यत्ययचश्म ( है ० सू०, ४।४४७ ) के अनुसार भूतकाल का अर्थं देती है । प्रस्तुत छन्द को हृदयंगम करने के पूर्व प्रसक्त प्रकरण का परिज्ञान आवश्यक है । नायिका ने जिस दूती को नायक के निकट सन्देश देकर भेजा था वह उसी ( नायक ) के साथ खेत में नायिका की सखी विपरीत लक्षणा में उस पर व्यंग्य
रमण करके लौटी है ।
कस रही है
अर्थ - जिसने खेत में तुम से रमण किया है, क्या उसी का अनंग-संताप
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