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[ अपराह्नागतजामातुद्विगुणर्यातगुणयति मोहनोत्कण्ठाम् । गृहपश्चाद्भागमज्जनपिशुनो
वध्वा
वलयशब्दः ॥ ]
घर के पिछवाड़े नहान की सूचना देने वाली बहू के कंकणों की शनकार दोपहर के बाद आये हुए दामाद की सूरत - तृष्णा दूनी कर देती है ।। ८३ ॥ जुज्झचवेडामोडिअजज्जर कण्ण हस कच्छाबन्धो च्चि भीरुमल्लहिअअं
गाथासप्तशती
जुण्णमल्लस्स I समुक्खणइ ॥ ८४
[ युद्धचपेटामोटितजर्जजरकर्णस्य जीर्णमल्लस्य । कक्षाबन्ध एव भीरुमल्लहृदयं समुत्खनति ॥ जिसके कान युद्ध की चपेट में उखाड़ने से जर्जर हो गये हैं, उस पुराने पहलवान को काछ बाँधते देखकर ही डरपोक प्रतिद्वन्दी का हृदय फट जाता है । ८४ ।।
आणत्तं तेण तुमं पइणो पहएण षडहसद्देण । महिल ! ण लञ्जसि ? णच्चसि दोहगे पाअडिज्जन्ते ॥ ८५
[ आज्ञप्तं तेन त्वां पत्या प्रहतेन पटहशब्देन । मल्लि न लज्जसे नृत्यसि दौर्भाग्ये प्रकटीक्रियमाणे ॥ ]
अरी पहलवान की पत्नी ! पति के बजाये हुए ढोल के द्वारा तुम्हारे दुर्भाग्य की सूचना मिलने पर भी तुम नाचती ही रहती हो, लज्जित क्यों नहीं होती ? ।। ८५ ।।
मा वच्चइ वीसम्भं इमाणें वहुचाडुकम्मणिउणाणं । निव्वत्तिअकज्जपरम्हाणं सुणआणं व खलाणं ॥ ८६ ॥
[ मा व्रजत विस्रम्भमेषां
बहुचाटुकर्मनिपुणानाम् । निर्वर्तत कार्यपराङ्मुखानां शुनकानामिव खलानाम् ॥ ]
जो कुत्तों की तरह खुशामद करना खूब जानते हैं और काम पूरा हो जाने पर मुँह फेर लेते हैं, उन खलों के पास विश्वस्त होकर मत जाओ ॥ ८६ ॥ अण्णग्गामपउत्था कढन्ती मण्डलाणं रिछोलि । अक्खण्डि असोहग्गा वरिसस जिअउ मे सुणिमा ॥ ८७ ॥
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[ अन्यग्रामप्रस्थिता कर्षयन्ती मण्डलानां पंक्तिम् । अखण्डितसौभाग्या वर्षशतं जीवतु मे शुनी ॥ ]
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