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________________ गाथासप्तशती १. स्वप्तुम् ( यन्त्रपक्ष ) सोने २. श्रोतुम् ( यौवनपक्ष ) सुनने ३. स्रोतुम् ( इक्षुपक्ष ) टपकने १-(यन्त्रपक्ष ) ईख का द्रव २-( यौवन पक्ष ) आनन्द . ३-( इक्षुपक्ष ) ईख का रस कड्ढे ३ कर्षति, कर्षयति १-खींचता है, खिंचवाता है । अर्थ-यन्त्र ( कोल्ह ) और यौवन ( युवावस्था) का स्वभाव इक्षु ( ईख ) के समान नहीं होता है क्योंकि यन्त्र एक स्थान पर बैठता है ( भूमि में भड़ा होने के कारण वहीं अवस्थित रहता है । ) कोमल इक्षुओं का रस (द्रव ) निकाल लेता है तथा ( ईख की पेराई रात में होने के कारण) सोने नहीं देता। इसी प्रकार यौवन भी शृंगार की ललित चेष्टाओं का उपदेश देता है, ( शिक्षा देता है ? ) रस निकालता है (आनन्द लेता है ) और ( किसी की शिक्षापूर्ण बातें ) सुनने नहीं देता। जबकि इक्षु ( कोल्हू में ) प्रवेश करता है ललितों (प्रियजनों ) के लिये रस निकलवा देता है और उस ( रस को ) व्यर्थ टपकने नहीं देता ( दूसरों के लिये अपने भीतर सँजो कर रखता है । ) । १९. बहुएंहिं जंपिएहि सिटें अम्ह सवहे करेऊण । सदो च्चिय से भद्दो भोइणिजते रसो पत्थि ॥६७०॥ बहुकैर्जल्पितैः कथितं स्मः शपथं कृत्वा । शब्द एव तस्या भद्रो भोगिनीयन्त्रे रसो नास्ति । "बहुत मजदूरों ने शपथ करके कहा है कि सेठानी की मशीन में आवाज ज्यादा है, रस कुछ भी नहीं।" । यह अनुवाद तो ठीक है परन्तु गाथा की संस्कृतच्छाया अशुद्ध है। 'कथितं स्मः इस प्रयोग में यदि 'स्मः' अस् धातु के उत्तम पुरुष का बहुवचन है तो उसके साथ 'कथितम्' का अन्वय व्याकरण-विहित नहीं है। मूल में 'अम्हे' पद 'स्म' का प्राकृत रूप नहीं है । वह अस्मद् का षष्ठयन्त रूप है और अस्माकं के अर्थ में प्रयुक्त है। 'सवहे' द्वितीया का बहुवचन है। संस्कृत में उसका रूपान्तर 'शपथान्' होगा । 'से' की संस्कृतच्छाव्या 'तस्याः ' की गई है। वह भी वाक्य में शब्दों की स्थिति को देखने पर उचित नहीं प्रतीत होती क्योंकि 'स्त्रीलिंग तस्याः तत्पुरुषसमास के अवयवभूत अप्रधान भोगिनी शब्द से अन्वित नहीं हो सकता है। समस्त पद भोगिनीयन्त्र में प्रधानता यन्त्र शब्द की है। उसके अनुसार 'से' की संस्कृतच्छाया तस्य होनी चाहिये । 'से' का प्रयोग दोनों लिंगों में विहित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002116
Book TitleGathasaptashati
Original Sutra AuthorMahakavihal
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size9 MB
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