SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पञ्चम शतकम् १०९. हृदय से निकलने वाली वाणी और ही प्रकार को होती है । हटो, अधरों से निकली हुई इन बातों से क्या होगा ? ॥ ५१ ।। कह सा सोहग्गगुणं मए समं बहइ णिग्घिण तुमम्मि । जीअ हरिज्जइ गोत्तं हरिऊण अ दिज्जए मज्झ ॥ ५२॥ [कथं सा सौभाग्यगुणं मया समं वहति निघृण त्वयि । यस्या ह्रियते नाम हृत्वा च दीयते मह्यम् ।। ] निर्मम ! जिसकी संज्ञा छीनकर मुझे प्रदान कर रहे हो, उस अबला का सौभाग्य मेरे समान कैसे हो सकता है ॥ ५२ ॥ सहि साहसु सबभावेण पुच्छिमो कि असेसमहिलाणं । बड्ढन्ति करठिआ बिअ वलआ दइए पउम्मि ॥ ५३ ॥ [ सखि कथम सद्भावेन पृच्छामः किमशेषमहिलानाम् । वर्धन्ते करस्थिता एव वलया दयिते प्रोषिते ।। ] ___ सखि ! मैं तुम्हें विश्वासपात्र समझ कर पूछ रही हूँ, क्या पति के परदेश चले जाने पर सभी महिलाओं के हाथों के कंकण बड़े हो जाते हैं ॥ ५३ ॥ भमइ पलित्तइ जूरइ उक्खिविउ से करं पसारेइ । करिणो पङ्कक्खुत्तस्स गेहणिअलाइआ करिणी ॥ ५४ ॥ [ भ्रमति परितः खिद्यते उत्क्षेप्तु तस्य करं प्रसारयति । करिणः पङ्कनिमग्नस्य स्नेहनिगडिता करिणी ॥ ] गजराज के दलदल में फँस जाने पर प्रेमाविष्ट करिणी उसके चारों ओर चक्कर काट रही है, दुखो हो रही है और निकालने के लिए संड़ फैला रही है ॥ ५४॥ रइकेलिहिअणिसणकरकिसलअअरुद्धणअणखुअलस्स । रुदस्स तइअणअणं पव्वइपरिउम्बिअं जअइ ॥ ५५॥ [ रतिकेलिहृतनिवसनकरकिसलयरुद्ध नयनयुगलस्य । रुद्रस्य तृतीयनयनं पार्वतीपरिचुम्बितं जयति ॥ ] रति-काल में वस्त्रों का अपहरण कर लेने पर पाणि-पल्लव से जिनके दोनों । नेत्र बन्द कर दिये गये थे, उन भगवान् रुद्र के उस तृतीय नेत्र की जय हो जिसे पार्वती ने चूम लिया था ॥ ५५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002116
Book TitleGathasaptashati
Original Sutra AuthorMahakavihal
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy