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________________ अर्थनिरूपण पेट के लिये ( जीविकोपार्जन के लिये ) बाहर निकले हुये तथा घर की दीवार देखने वाले का कल्याण ही है। तुम्हारे घर में लोगों को प्रसन्न रखने का आग्रही कुत्ता अतिथिवान् है । ( अर्थात् अतिथिसत्कार का दायित्व वहन कर रहा है।) गाथा का तात्पर्य यह है, तुम प्रायः बाहर ही रहते हो। इससे यह मत समझो कि तुम्हारे घर में कोई धार्मिक कार्य नहीं होता। अतिथि पूजा भी गृहस्थ का धर्म है। तुम्हारी अनुपस्थिति में वह कार्य पालतू कुत्ता करता है और जिस घर का पालतू कुत्ता भी इतना धार्मिक है, उस गृहस्थ का कल्याण अवश्य होगा। इससे यह ध्वनि निकलती है, अरे, तुझे तो केवल पेट की चिन्ता रह गई है, सामाजिक प्रतिष्ठा और लोकलज्जा को तूने तिलांजलि दे दी है। तेरी अनुपस्थिति में कोई युवक घर के भीतर घुस जाया करता है। यह विश्वासघाती कुत्ता भूकता भी नहीं। अतः बाहरी गृहभित्तियों के भीतर सुरक्षित समझ कर स्त्री पर विश्वास मत कर, घर के भीतर जो कुछ हो रहा है उसे भी जानने का प्रयत्न कर। इस उत्कृष्ट गाथा का प्रत्येक पद साभिप्राय एवं ध्वनिगर्भित है। १३. णिवडिहिसि सुण्णहिअए! जलहरजलपंकिलम्मि मग्गम्मि । उप्पेक्खागयपिययमहत्थे हत्थं पसारेती ॥ ७६० ॥ निपतिष्यसि शून्यहृदये! जलधरजलपङ्किले मार्गे। उत्प्रेक्षागतप्रियतमहस्ते हस्तं प्रसारयन्ती ॥ इस गाथा का अनुवाद यों है "री शून्यहृदये ! देखभाल के लिये आये प्रियतम के हाथ में हाथ फैलाती हुई तू मेघ के जल से पंकिल मार्ग में गिरेगी।" उपयुक्त अनुवाद असंगत है क्योंकि प्रियतम के हाथ में हाथ डालने पर न गिरने की ही सम्भावना अधिक है। अवलम्ब मिल जाने पर गिरता हुआ व्यक्ति भी संभल जाता है । अतः प्रियतम के हाथ में हाथ फैलाना पतन का हेतु नहीं हो सकता । जब पंकिल मार्ग पर दृष्टि नहीं रहती और किसी का सहारा भी नहीं रहता है तभी गिरने की सम्भावना होती है । अतः गाथा में ऐसी ही किसी परिस्थिति का वर्णन होना चाहिये । 'उप्पेक्खागयपिययम' का तात्पर्य अनुवादक की समझ में नहीं आया है। यहाँ उपपेक्खा (उत्प्रक्षा) का अर्थ कल्पना है। विरहिणी नायिका प्रियतम के संयोग की मधुर कल्पना में तल्लीन है । पंकिल मार्ग में चलते-चलते वह ध्यानावस्थित होकर कल्पना की आँखों से देखती है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002116
Book TitleGathasaptashati
Original Sutra AuthorMahakavihal
Author
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size9 MB
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