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अर्थनिरूपण
शब्दार्थ मोघासानाम् = १. जिनके लिये आशा करना व्यर्थ है ।
( मोघा आशा येभ्यः । ) २. जिनका भक्षण निष्फल है ।
( मोघा निष्फलं अतिशय भक्षणं येषाम् ) ३. जिनकी आशा व्यर्थ है।
( मोघा निष्फला आशा येषाम् ) रस = १. द्रवरूप रस
२. आनन्द, सुख अणिच्छृणं = १. ( अन्येक्षणाम् ) अन्य इक्षुओं का
२. ( अनिच्छूनाम् ) अनिच्छुकों का ३. ( अन्येच्छुकानाम् ) अन्य के प्रति इच्छुकों का । पूर्वार्ध के 'सुविणट्ठाण पद में भी श्लेष है। इक्षुपक्ष में उसकी संस्कृतच्छाया ऊपर दी गई है । शृंगारपक्ष में उसका संस्कृत रूपान्तर 'स्वप्नस्थानाम्' होगा। उभयपक्ष में अर्थ इस प्रकार होंगेसुविणट्ठाणं = १. ( सुविनष्टानाम् ) अच्छी तरह टूटे हुओं का।
२. ( स्वप्नस्थानाम् ) स्वप्न में स्थित पुरुषों का अर्थात् सपने में
क्षण भर के लिये मिले हुये मिथ्या पुरुषों का। गाथा में समासोक्ति के द्वारा कोई तरुणी किसी ऐसे तरुण को उपालम्भ दे रही है, जो उस ( तरुणी ) के प्रणय का अनिच्छुक है और अन्य प्रेमिका की इच्छा करता है।
अर्थ-( इक्षुपक्ष ) पुड्र नामक इक्ष ( श्वेत ईख ) के टूट जाने पर भी जो रसाधिक्य होता है वह उन अन्य इक्षुओं में कहाँ हो सकता है जिनकी आशा ही रिरर्थक है, या जिनका भक्षण ही निरर्थक है ।
(शृंगार-पक्ष ) सपने के पुरुष से भी जो आनन्द मिलता है वह उन अनिच्छुक अथवा अन्य के इच्छुक पुरुषों से कहाँ हो सकता है, जिनकी आशा करना ही व्यर्थ है। ९. जइ वि हु दिल्लिदिलिया तह वि हु मा पुत्ति! णग्गिआ भमसु ।
वेआ णअरजुवाणो माअं धूमाइ लक्खंति ॥ ७३५॥
अनुवादक ने अस्पष्टता का उल्लेख करके इसे छोड़ दिया है, अनूदित नहीं किया है । गाथा के तृतीय चरण का पाठ भ्रष्ट है । देआ के स्थान पर छेआ पाठ होना चाहिये। दिल्लिदिलिआ देशी शब्द है, उसका अर्थ है, बालिका । इसकी संस्कृतच्छाया यों होंगी
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