________________
८६ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन
१४. अनन्तनाथ : ___चौदहवें तीर्थंकर अनन्तनाथ का जन्म अयोध्या नगरी के इक्ष्वाकुवंशी काश्यपगोत्री राजा सिंहसेन के यहाँ हआ था। इनकी माता जयश्यामा ने भी अन्य जिन माताओं की तरह सोलह शभस्वप्न व मुख में प्रवेश करता हाथी देखा। ज्येष्ठ कृष्णा द्वादशी के दिन इनका जन्म हुआ और तभी इन्द्रों ने उन्हें मेरुपर्वत पर ले जाकर जन्माभिषेक किया एवं 'अनन्तजित्' नाम रखा । १७९ श्वेताम्बर परम्परा में इनके नामकरण के सम्बन्ध में उल्लेख है कि नामकरण के समय महाराज सिंहसेन ने विचार किया-"बालक की गर्भावस्था में आक्रमणार्य आये हए अतीव उत्कट अपार शत्रु सैन्य पर भी मैंने विजय प्राप्त की, अतः इस बालक का नाम अनन्तनाथ रखा जाय ।' १८० ___ इनकी आयु तीन लाख वर्ष व शरीर पचास धनुष ऊँचा था । इनका रंग सुवर्ण के समान था व इन्हें सभी शुभ लक्षणों से युक्त बताया गया है। राज्याभिषेक के बाद अनेक वर्षों तक राज्य का उपभोग करने के बाद एक दिन उल्कापात देखकर इन्हें संसार से विरक्ति हो गयी। लौकान्तिक देवों द्वारा पूजित होने के बाद अपने पुत्र को राज्य सौंप कर ये सहेतुक वन में एक हजार राजाओं के साथ दीक्षित हो गये और उसी समय उन्हें मनःपर्यय ज्ञान प्राप्त हुआ।१८१ छद्मस्थ अवस्था में तपश्चरण करते हुए दो वर्ष व्यतीत हो जाने पर चैत्र कृष्ण अमावस्या के दिन रेवती नक्षत्र में पीपल वृक्ष के नीचे इन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। अनेक वर्षों तक प्रसिद्ध देशों में धर्म का उपदेश देते हुए अन्त में सम्मेदशिखर पर एक माह का योग निरोध कर चैत्र कृष्ण अमावस्या के दिन इन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई ।१८२
अनन्तनाथ का लांछन श्येन पक्षी या रीछ तथा यक्ष-यक्षी पाताल एवं अंकुश ( या अनन्तमति ) हैं। १२वीं-१३वीं शती ई० की अनन्तनाथ की केवल दो स्वतन्त्र मूर्तियाँ बारभुजी गुफा और विमलवसही से मिली हैं । १८3 एलोरा में इनकी एक भी मूर्ति नहीं है। १५. धर्मनाथ :
पन्द्रहवें तीर्थंकर धर्मनाथ का जन्म रत्नपुर नगर के राजा भानु के यहाँ हुआ था। इनकी माता का नाम सुप्रभा था । माघ शुक्ला त्रयोदशी के दिन पुष्य नक्षत्र में सुप्रभा ने जिन बालक को जन्म दिया जिसका इन्द्रों ने सुमेरु पर्वत पर ले जाकर क्षीरसागर के जल से अभिषेक किया व
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org