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________________ तीर्थकर (या जिन) : ८५ महिष है और यक्ष-यक्षी के रूप में कुमार एवं चन्द्रा ( या गान्धारी) का उल्लेख मिलता है । १७५ एलोरा में वासुपूज्य की एक भी मूर्ति नहीं है। १३. विमलनाथ: तेरहवें तीर्थंकर विमलनाथ का जन्म काम्पिल नामक नगर के ऋषभदेव के वंशज कृतवर्मा के यहाँ हुआ था। इनकी माता का नाम जयश्यामा था। माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन माता जयश्यामा ने जिन पुत्र को जन्म दिया। जन्माभिषेक करने के बाद देवों ने जिन पुत्र का नाम 'विमलवाहन' रखा। श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार बालक के गर्भ में रहने के समय माता तन-मन से निर्मल बनी रहीं इसी कारण महाराज ने बालक का नाम 'विमलनाथ' रखा ।१७॥ इनकी आयु साठ लाख वर्ष व शरीर साठ धनुष ऊँचा था। पन्द्रह लाख वर्ष का कुमार काल बीत जाने पर इनका राज्याभिषेक हुआ और राज्य का उपभोग करते हुए जब उनकी आयु के तीस लाख वर्ष बीत गये तो एक दिन हेमन्त ऋतु में बर्फ की शोभा को तत्क्षण विलीन होता हुआ देखकर उन्हें संसार से वैराग्य हो गया। उसी समय सारस्वत आदि लौकान्तिक देवों ने उनकी स्तुति व अन्य देवों ने दीक्षा कल्याणक उत्सव किया। तीन वर्ष व्यतीत हो जाने पर माघ शक्ल षष्ठी के दिन जामुन के वृक्ष के नीचे इन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई । उसी समय देवों द्वारा उनके लिये देव दुन्दुभि आदि आठ मुख्य प्रातिहार्यों को प्रकट करने का उल्लेख सर्वप्रथम गुणभद्र कृत उत्तरपुराण में 'विमलनाथ' के साथ मिलता है। अनेक देशों में विहार करने के बाद सम्मेदशिखर पर एक माह का निरोध धारण कर, आठ हजार छह सौ मुनियों के साथ प्रतिमायोग धारण कर आषाढ़ कृष्ण अष्टमी के दिन उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया।१७७ ल० ९वीं शती ई० से विमलनाथ की स्वतन्त्र मूर्तियों के उदाहरण मिलते हैं जिसका एक प्रारम्भिक उदाहरण वाराणसी से मिला है और सम्प्रति सारनाथ संग्रहालय में सुरक्षित है (चित्र ५ )। कुछ अन्य उदाहरण बटेश्वर (आगरा), अलुआरा और बारभुजी एवं त्रिशूल गुफाओं तथा विमलवसही से मिले हैं। विमलनाथ के साथ लांछन के रूप में वराह का और यक्ष-यक्षी के रूप में षण्मुख एवं विदिता ( या वैरोट्या ) का उल्लेख हुआ है ।१७० एलोरा में विमलनाथ की एक भी मूर्ति नहीं मिली है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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