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________________ तीर्थकर (या जिन) : ८७ 'धर्मनाथ' नाम रखा ।१८४ श्वेताम्बर परम्परा में इनके नामकरण के सम्बन्ध में उल्लेख है कि गर्भकाल में माता की भावना सदा धर्ममय रही, अतः इनका नाम धर्मनाथ रखा गया ।१८५ इनकी आयु दस लाख वर्ष और शरीर एक सौ अस्सी हाथ ऊँचा था। कुमार काल के ढाई लाख वर्ष व्यतीत हो जाने पर इन्हें राज्य प्राप्त हआ और राज्य करते हुए पाँच लाख वर्ष व्यतीत हो जाने पर एक दिन उल्कापात देखकर इन्हें इस संसार से विरक्ति हो गयी। उसी समय लौकान्तिक देवों ने आकर इनका दीक्षा कल्याणक किया। अपने ज्येष्ठ पुत्र को राज्य देकर इन्होंने शालवन उद्यान में एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा धारण किया और उसी समय इन्हें मनःपर्ययज्ञान उत्पन्न हो गया। छद्मस्थ अवस्था में एक वर्ष व्यतीत हो जाने पर पौष शुक्ल पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र में सप्तच्छद वृक्ष के नीचे इन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। अनेक वर्षों तक विहार व धर्म का उपदेश देने के बाद सम्मेदशिखर पर ज्येष्ठ शुक्ला चतुर्थी के दिन धर्मनाथ ने निर्वाण प्राप्त किया ।१८६ वज्र लांछन एवं किन्नर और कन्दर्पा ( या मानसी ) यक्ष-यक्षी वाले धर्मनाथ की केवल कुछ ही मूर्तियाँ बारभुजी और त्रिशूल गुफाओं, इन्दौर संग्रहालय और विमलवसही से मिली हैं।१८७ एलोरा में धर्मनाथ की एक भी मूर्ति नहीं उत्कीर्ण है। १६. शान्तिनाथ : ___ सोलहवें तीर्थंकर शान्तिनाथ को चक्रवर्ती पद भी प्राप्त था । ऋषभ, पार्श्व और महावीर के बाद निःसंदेह शान्तिनाथ जैनधर्म के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तीर्थंकर थे जिनसे सम्बन्धित कई स्वतन्त्र चरितग्रन्थों की भी रचना की गयी। इनका जन्म हस्तिनापुर के काश्यपगोत्री राजा विश्वसेन के यहाँ हुआ था। इनकी माता का नाम ऐरा था। इन्होंने भी अन्य जिन माताओं की तरह सोलह शुभ स्वप्न व मुख में प्रवेश करता हाथी देखने के बाद गर्भ धारण किया था। ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी के दिन इन्होंने जिन बालक को जन्म दिया जिसे इन्द्र ऐरावत हाथी पर सुमेरु पर्वत पर ले गये और वहाँ क्षीरसागर के जल से अभिषेक करने के बाद इनका नाम 'शान्तिनाथ' रखा। श्वेताम्बर परम्परा में इनके नामकरण के सम्बन्ध में उल्लेख है कि इनके जन्म से पूर्व हस्तिनापुर में महामारी से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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