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तीर्थकर (या जिन) : ८३ केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। अनेक देशों में धर्मोपदेश एवं विहार करते हुए ये सम्मेदशिखर पर पहुंचे, जहाँ पर एक माह का योग निरोध कर प्रतिमायोग धारण कर एक हजार मुनियों के साथ आश्विन शुक्ला अष्टमी के दिन पूर्वाषाढ़ नक्षत्र में मोक्ष प्राप्त किया। उसी समय इन्द्र ने इनका पंचकल्याणक किया ।१६७ ।। ____शीतलनाथ के १०वीं शती ई० से पूर्व की एक भी स्वतंत्र मूर्ति नहीं मिली है। स्वतंत्र मूर्तियों के उदाहरण बारभुजी गुफा, आरंग एवं त्रिपुरी ( म० प्र०) और कुम्भारिया से मिले हैं। शीतल का लांछन श्रीवत्स है और यक्ष-यक्षी के रूप में ब्रह्म ( या ब्रह्मा) एवं अशोका ( या मानवी ) का उल्लेख मिलता है । १६८ एलोरा में शीतलनाथ की कोई मूर्ति नहीं मिली है। ११. श्रेयांपनाथ :
११वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्म भरत क्षेत्र के सिंहपुर नामक नगर के इक्ष्वाकुवंशीय राजा विष्णु के यहाँ हुआ था। इनकी माता का नाम नन्दा था। फाल्गुन कृष्ण एकादशी ( श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार फाल्गन कृष्ण द्वादशी) के दिन इनका जन्म हआ था। सौधर्मेन्द्र ने जिनबालक को महामेरु पर्वत पर ले जाकर क्षीरसमुद्र के जल से उनका अभिषेक किया और श्रेयांस नाम रखा।१६९ श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार जिन बालक के जन्म होने से समस्त राजपरिवार व राष्ट्र का श्रेय-कल्याण हुआ, अतः माता-पिता ने इनका नाम श्रेयांसनाथ रखा।१७०
श्रेयांसनाथ की आयु चौरासी लाख वर्ष तथा शरीर अस्सी धनुष ऊँचा था। कुमारावस्था के इक्कीस लाख वर्ष व्यतीत हो जाने पर उन्होंने राज्य प्राप्त किया तथा बयालीस वर्ष तक राज्य करने के बाद एक दिन वसन्त ऋतु का परिवर्तन देखकर इन्हें इस नश्वर संसार के प्रति विरक्ति उत्पन्न हो गयी। तभी लौकान्तिक देवों ने आकर इनकी स्तुति की। अपना राज्य पुत्र को सौंप कर ये मनोहर नामक उद्यान में गये और वहाँ एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा धारण की। ___ छद्मस्थ अवस्था में दो वर्ष बीत जाने पर तुम्बुर वृक्ष के नीचे माघकृष्ण अमावस्या के दिन श्रवण नक्षत्र में इन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। कई वर्षों तक धर्म का उपदेश देते और विहार करते हए श्रेयांसनाथ सम्मेदशिखर पर पहुँचे और वहाँ एक माह तक प्रतिमायोग धारण
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