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तीर्थकर (या जिन) : ७५ (३) सम्भवनाथ :
अजितनाथ के बाद श्रावस्ती के इक्ष्वाकुवंशीय राजा दृढ़राज के यहाँ सम्भवनाथ का जन्म हुआ। इनकी माता का नाम सुषेणा तथा पिता का नाम दृढ़राज था । १३६ फाल्गुन शुक्ला अष्टमी के दिन माता सुषेणा ने सोलह शुभस्वप्न तथा मुख में प्रवेश करता एक हाथी देखा। महाराज से उन स्वप्नों का फल जानकर वह अति प्रसन्न हुयीं और कार्तिक शुक्ल पौर्णमासी के दिन मृगशिरा नक्षत्र में उन्होंने तीन ज्ञानों से युक्त अहमिन्द्र पुत्र को जन्म दिया। इन्द्रों ने उनका जन्मकल्याणक उत्सव किया व उनका नाम सम्भवनाथ रखा ।१३७ श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार जब से ये गर्भ में आये देश की भूमि चारों ओर धान्य से लहलहा उठी, अतः माता-पिता ने इनका नाम सम्भवनाथ रखा । १३८
सम्भवनाथ की आयु साठ लाख पूर्व व शरीर चार सौ धनुष ऊँचा था। आयु का एक चौथाई भाग बीत जाने पर उन्हें राज्य का वैभव प्राप्त हुआ। बहत समय तक राज्य का उपभोग करते हुए किसी दिन मेघों का विभ्रम देखकर उन्हें समस्त नश्वर विषयों के प्रति विरक्ति उत्पन्न हो गयी और उन्होंने अपना राज्य पुत्र को देकर सहेतुक वन में एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा धारण की। दीक्षा लेते ही उन्हें मनःपर्ययज्ञान प्राप्त हो गया। दूसरे दिन भिक्षा प्राप्त करने हेतु सम्भवनाथ ने श्रावस्ती नगरी में प्रवेश किया और वहाँ के सुरेन्द्रदत्त नामक राजा से दान में आहार प्राप्त किया। चौदह वर्षों तक छद्मस्थ अवस्था में कठोर साधना के बाद कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन शाल्मली वृक्ष के नीचे इन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ। उसी समय कल्पवासियों तथा ज्योतिष्क आदि तीन प्रकार के देवों ने चौथा ज्ञानकल्याणक उत्सव किया। तदनन्तर धर्म का उपदेश देने के उद्देश्य से सम्भवनाथ ने बहुत समय तक आर्य देशों का विहार किया। आयु का एक माह शेष रहने पर विहार बन्द कर एक हजार मुनियों के साथ प्रतिमायोग धारण कर चैत्र शुक्ल षष्ठी के दिन इन्होंने मोक्ष प्राप्त किया। उसी समय देवों ने इनका निर्वाण कल्याणक किया । १३९
सम्भवनाथ की प्राचीनतम मूर्ति कुषाणकाल में मथुरा में बनी जिसमें पीठिका लेख में नामोल्लेख के आधार पर सम्भवनाथ की पहचान की जा सकी है। मध्ययुग में सम्भवनाथ की केवल कुछ ही मूर्तियाँ देवगढ़, खजुराहो, बिजनौर एवं उड़ीसा की नवमुनि व वारभुजी
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