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________________ ४६ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन तथा त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र आदि ग्रन्थों में राम के जीवन से संबंधित विभिन्न घटनाओं एवं हरिवंशपुराण (जिनसेनकृत), हरिवंशपुराण (धवलकृत-११वीं-१२वीं शती ई०) एवं त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में कृष्ण-बलराम के जीवन से सम्बन्धित विभिन्न घटनाओं का विस्तृत उल्लेख हुआ है । जैन शिल्प में राम का रूपायन केवल खजुराहो के पार्श्वनाथ मन्दिर पर उपलब्ध है१२४ जबकि बलराम-कृष्ण का निरूपण देवगढ़ ( मन्दिर २) एवं राज्य संग्रहालय, लखनऊ (क्र० ६६.५३ ) की नेमिनाथ मूर्तियों में मिलता है ।१२५ इसके अतिरिक्त विमलवसही, लूणवसही एवं कुंभारिया के महावीर मन्दिरों के वितानों पर भी... नेमिनाथ के जीवन दृश्यों में तथा स्वतंत्र रूप से बलराम-कृष्ण के अंकन द्रष्टव्य हैं । १२६ भरत व बाहुबली : जैन ग्रन्थों में ऋषभनाथ के पुत्रों-भरत एवं बाहुबली के मध्य हुए यद्ध, बाहबली की विजय, विरक्ति एवं कठिन साधना तथा जीवन के अन्तिम दिनों में भरत द्वारा दीक्षा ग्रहण करने के विस्तृत उल्लेख हैं । १२७ आदिपुराण में उल्लिखित भरत-बाहुबली के द्वन्द्व-युद्ध, बाहुबली की कठिन तपश्चर्या एवं कालान्तर में भरत चक्रवर्ती के दीक्षा लेने और कैवल्य प्राप्त करने के सन्दर्भ देवगढ़, खजुराहो, एलोरा, बादामी तथा अयहोल जैसे स्थलों पर, बाहुबली एवं भरत के शिल्पांकन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं । १२८ जैन शिल्प में भरत-बाहुबली के युद्ध का विस्तृत शिल्पांकन विमलवसही एवं कुम्भारिया के शान्तिनाथ मन्दिर में हैं । १२९ इसके अतिरिक्त भरत एवं बाहुबली की स्वतन्त्र मूर्तियाँ भी देवगढ़, खजुराहो, बिलहरी एवं एलोरा में उत्कीर्ण हैं । १30 जिनों के माता-पिता : जैन ग्रन्थों में २४ जिनों की उपासना के उल्लेख मिलते हैं । माताओं की उपासना के सन्दर्भ जिनों के पिता की तुलना में अधिक मिलते हैं । १३१ जिनों के माता-पिता की गणना महान आत्माओं में की गयी है। १३२ समवायांगसूत्र में वर्णित माता-पिता की सूची ही कालान्तर में मान्य हुई । १33 यू० पी० शाह के अनुसार प्राचीनकाल से ही तीर्थंकरों के माता-पिता को भी जैन देवकुल व उपासना में महत्त्व प्राप्त था।१३४ महापुराण में कई स्थलों पर इन्द्र द्वारा तीर्थंकरों के माता-पिता के पूजन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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