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________________ -४४ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन गयी थी । १०७ यक्ष-यक्षी युगलों की प्रारम्भिक सूची तिलोयपण्णन्ति १०८ ( दिगम्बर ), कहावली ( श्वेताम्बर ) एवं प्रवचनसारोद्धार १०१ ( श्वेता-म्बर ) में वर्णित है । " तिलोय पण्णत्ति में वर्णित २४ यक्ष-यक्षियों की सूची इस प्रकार है । ११० २४ यक्षों में गोवदन, महायक्ष, त्रिमुख, यक्षेश्वर, तुम्बुख, मातंग, विजय, अजित, ब्रह्म ब्रह्मेश्वर कुमार, षण्मुख, पाताल, किन्नर, किम्पुरुष, गरुड़, गन्धर्व, कुबेर, वरुण, भृकुटि, गोमेध, पार्श्व, मातंग तथा गुह्यक का तथा २४ यक्षियों में चक्रेश्वरी, रोहिणी, प्रज्ञप्ति, वज्रश्रृंखला, वज्रांकुशा, अप्रतिचक्रेश्वरी, पुरुषदत्ता, मनोवेगा, कालो ज्वालामालिनी, महाकाली, गौरी, गान्धारी, वैरोटी, सोलसा, अनन्तमती, मानसी, महामानसी, जया, विजया, अपराजिता, बहुरूपिणी, -कुष्माण्डी, पद्मा और सिद्धायिनी का नामोल्लेख हुआ है । २४ यक्ष-यक्षी युगलों के लाक्षणिक स्वरूपों का विस्तृत निरूपण सर्वप्रथम ११वीं - १३वीं शती ई० के प्रतिष्ठा ग्रन्थों ( निर्वाणकलिका, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, प्रतिष्ठासारसंग्रह एवं प्रतिष्ठासारोद्धार ) में मिलता है | श्वेताम्बर तथा दिगम्बर ग्रन्थों में यक्ष-यक्षियों के नामों एवं लाक्षणिक विशेषताओं के सन्दर्भ में पर्याप्त अन्तर है । १११ जैन शिल्प में केवल यक्षियों के ही सामूहिक उत्कीर्णन का प्रयास किया गया जिसका प्रारंभिकतम उदाहरण देवगढ़ ( ललितपुर, उ० प्र० ) के शान्तिनाथ मन्दिर ( मन्दिर - १२,८६२ ई० ) पर है । ११२ महापुराण में तीर्थंकरों के साथ यक्ष - यक्षी युगलों का उल्लेख नहीं किया गया है । विद्यादेवियाँ : वसुदेवहिण्डी (संघदासकृत) में विद्याओं को गन्धर्व एवं पन्नगों से सबद्ध बताया गया है । ११३ आवश्यकचूर्णि (जिनदासकृत) एवं आवश्यकनिर्युक्ति ( हरिभद्रसूरिकृत ) में गौरी, गांधारी, रोहिणी तथा प्रज्ञप्ति का प्रमुख विद्याओं के रूप में उल्लेख है । ११४ लगभग नवीं शती ई० में अनेक विद्यादेवियों में से १६ महाविद्याओं की सूची तैयार हुई । ११५ पद्मचरित ( रविषेणकृत - ६७६ ई० ) में नमि, विनमि की कथा तथा प्रज्ञप्ति विद्या का उल्लेख है । " हरिवंशपुराण में प्रज्ञप्ति, रोहिणी, अंगारिणी, महागौरी, गौरी, सर्वविद्याप्रकर्षिणी, महाश्वेता, मायूरी, हारी, निर्वज्ञशाड़चला, तिरस्कारिणी, छायासंक्रामिणी, कूष्माण्ड, गणमाता, सर्व विद्याविराजिता, आर्यकुष्माण्डदेवी, अच्युता, आर्यवती, गान्धारी, निवृति, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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