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________________ ४२ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन इस प्रकार स्पष्ट है कि पाँचवीं शती ई० के अन्त तक जैन देवकुल के मल स्वरूप की अवधारणा काफी हद तक नियत हो चुकी थी। इन ग्रन्थों में जिनों, शलाकापुरुषों, यक्षों, विद्याओं, सरस्वती, लक्ष्मी, कृष्ण बलराम, नैगमैषी एवं लोकधर्म में प्रचलित विभिन्न देवों के नामोल्लेख एवं कहीं लक्षणपरक प्रारम्भिक सन्दर्भ भी मिलते हैं।९२ (ख) परवर्तीकाल (६ठो से १५वीं शती ई० तक) : ___ जैन देवकुल के परवर्ती विकास के अध्ययन में ल० छठी से १५वीं शती ई० की साहित्यिक सामग्री का उपयोग किया गया है। हीरालाल जैन के अनुसार आगम ग्रन्थों में प्रतिपादित विषयों को संक्षेप यो विस्तार से समझाने के लिये छठी-सातवीं शती ई० में नियुक्ति, भाष्य, चर्णि और टीका ग्रन्थों की रचना की गयी जिन्हें आगम का अंश माना गया। आठवीं से १२वीं शती ई० के मध्य ६३ शलाकापुरुषों के जीवन से सम्बन्धित कई श्वेताम्बर व दिगम्बर ग्रन्थों की रचना की गयी। कहावली ( भद्रेश्वरकृत-श्वेताम्बर ) तथा तिलोयपण्णत्ति ( यतिवृषभकृतदिगम्बर ) ६३ शलाकापुरुषों के जीवन से सम्बन्धित ल० आठवीं शती ई० के दो प्रारम्भिक ग्रन्थ हैं।९४ इसके अतिरिक्त ९वीं से ९२वीं शती ई० के मध्य ६३ शलाकापुरुषों के जीवन से सम्बन्धित जिन ग्रन्थों की रचना हुई उनमें महापुराण ( जिनसेन व गुणभद्रकृत-९वीं-१०वीं शती ई०), तिसट्ठि-महापुरिसगुणलंकार ( पुष्पदन्तकृत-९६५ ई०), एवं त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र (हेमचन्द्रकृत-१२वीं शती ई० का उत्तरार्ध) प्रमुख हैं ।५ राम, कृष्ण तथा कौरव-पाण्डवों की कथावस्तु को लेकर अनेक जैन पौराणिक महाकाव्यों की रचना हुयी ।९६ रामविषयक पौराणिक महाकाव्यों में पउमरिय (विमलसूरिकृत ), पद्मचरित या पद्मपुराण ( रविषेणकृत), त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र (हेमचन्द्रकृत), उत्तरपुराण ( गुणभद्रकृत ), महापुराण (पुष्पदन्तकृत ) तथा कन्नड़ चामुण्डरायपुराण विशेष उल्लेखनीय हैं । इनमें विमलसूरिकृत पउमचरिय, रविषणकृत पद्मपुराण तथा हेमचन्द्रकृत त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में रामकथा अधिकांशतः वाल्मीकि के रामायण के ऊपर आधारित है जबकि गुणभद्र के उत्तरपुराण, पुष्पदन्त के महापुराण एवं कन्नड़ चामुण्डरायपुराण की रामकथा विष्णुपुराण तथा बौद्ध दशरथ जातक से मिलती जुलती है।९७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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