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________________ जैन देवकुल : ४१ वाराही, कौबेरी, योगेश्वरी, चाण्डाली, शंकरी, बहुरूपा तथा सर्वकामा आदि विद्याओं का उल्लेख ग्रन्थ में विभिन्न स्थलों पर हुआ है। एक स्थल पर रावण के विरुद्ध युद्ध में विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से राम व लक्ष्मण द्वारा स्मरण किये जाने पर महालोचन देव द्वारा राम को सिंहवाहिनी विद्या तथा लक्ष्मण को गरुडा विद्या दिये जाने का उल्लेख है । कालान्तर में इन्हीं विद्याओं से गरुडवाहिनी अप्रतिचक्रा तथा सिंहवाहिनी महामानसी महाविद्याओं की धारणा विकसित हुई ।२ पउमचरिय में उल्लिखित विद्यादेवियों का कालान्तर में ल० आठवींनवीं शती ई० में १६ महाविद्याओं की सूची के निर्धारण की दृष्टि से विशेष महत्त्व रहा है । 3 लोकपाल : ___ आगमग्रन्थों में लोकपालों का भी उल्लेख मिलता है। पउमचरिय में लोकपालों से घिरे इन्द्र के ऐरावत गज पर आरूढ़ होने का उल्लेख है। ४ इन्द्र ने ही शशि ( सोम ) की पूर्व, वरुण की पश्चिम, कुबेर की उत्तर तथा यम की दक्षिण दिशा में स्थापना की।५ अन्य देवता : _स्थानांगसूत्र तथा अन्य जैन आगम ग्रन्थों में जैन देवों को चार प्रमुख वर्गों में विभक्त किया गया है-भवनवासी ( एक स्थल पर निवास करने वाले ), व्यन्तर (भ्रमणशील), ज्योतिष्क (आकाशीय नक्षत्र से सम्बन्धित) एवं वैमानिक या विमानवासी (स्वर्ग के देव )। ७ जैन देवकुल के इस वर्गीकरण को दोनों सम्प्रदायों ( दिगम्बर तथा श्वेताम्बर ) ने समान रूप से स्वीकार किया।८ दोनों ही संप्रदायों ने पहले वर्ग में १०, दूसरे में ८, तीसरे में ५ तथा चौथे वर्ग में ३० देवताओं को स्वीकार किया है। देवताओं का यह विभाजन निरन्तर मान्य रहा, पर शिल्ल में इन्द्र, यक्ष, अग्नि, नवग्रह तथा कुछ अन्य को ही आकारित किया गया। जैन ग्रन्थों में ऐसे देवों के भी उल्लेख हैं जिनकी पूजा लोक परम्परा में प्रचलित थी और जो हिन्दू तथा बौद्ध धर्मों में भी लोकप्रिय थे ।२० इनमें रुद्र, शिव, स्कन्द, मुकुन्द, वासुदेव, वैश्रमण ( या कुबेर ), गन्धर्व, पितर, नाग, भूत, पिशाच, लोकपाल ( सौम, यम, वरुण, कुबेर ), वैशवानर ( अग्निदेव ) आदि देव तथा श्री, हो, धृति, कीर्ति, अज्जा (पार्वती या आर्या या चण्डिका), कोट्टकिरिया ( महिषासुरवधिका) आदि देवियाँ प्रमुख हैं।९१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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