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________________ ३६ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन उत्तम ) पुरुषों का भी उल्लेख हुआ है । जिनों सहित इनकी कुल संख्या ६३ है। स्थानांगसूत्र में उल्लेख है कि प्रत्येक अवसपिणी और उत्सर्पिणी युग में अर्हन्त (जिन), चक्रवर्ती, बलदेव व वासुदेव उत्तम पुरुष उत्पन्न हए ।२० समवायांगसूत्र में २४ जिनों के साथ १२ चक्रवर्ती, ९ बलदेव, ९ वासुदेव तथा ९ प्रतिवासुदेव के उल्लेख हैं, पर शलाकापुरुषों की संख्या ६३ के स्थान पर ५४ ही बतायी गयी है। ९ प्रतिवासुदेवों को उत्तमपुरुषों में नहीं सम्मिलित किया गया।२१ कल्पसूत्र में भी तोर्थंकर, चक्रवर्ती एवं वासुदेव का उल्लेख है,२२ किन्तु यहाँ इनकी संख्या नहीं दी गयी है। ६३ शलाकापुरुषों की पूरी-पूरी सूची सर्वप्रथम पउमचरिय में मिलती है ।२3 इसमें २४ जिनों के अतिरिक्त १२ चक्रवर्ती ( भरत, सागर, मधवा, सनत्कुमार, शान्ति, कुन्थु, अर, सुभूम, पद्म, हरिषेण, जयसेन तथा ब्रह्मदत्त), ९ बलदेव ( अचल, विजय, भद्र, सुप्रभ, सुदर्शन, आनन्द, नन्दन, पद्म या राम तथा बलराम), ९ वासुदेव (त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयंभ, पुरुषोत्तम , पुरुषसिंह, पुरुषपुण्डरीक, दत्त, नारायण या लक्ष्मण तथा कृष्ण ) और ९ प्रतिवासुदेव ( अश्वग्रीव, तारक, मेरक, निशुम्भ, मधुकैटभ, बलि, प्रहलाद, रावण तथा जरासन्ध ) सम्मिलित हैं ।२४ इस सूची को ही कालान्तर में बिना किसी परिवर्तन के स्वीकार किया गया। इस ग्रन्थ में आगे के उत्सर्पिणी काल में भी इतने ही महापरुषों के होने का उल्लेख है। इस प्रकार जैन देवकुल की प्रारम्भिक अवधारणा की दृष्टि से पउमचरिय की ६३ शलाकापुरुषों की सूची का विशेष महत्व है ।२५ पउमचरिय में राम-रावण और भरत चक्रवर्ती की कथा का भी विस्तृत वर्णन है। इसका मुख्य कारण राम तथा कृष्ण का जनमानस से जुड़े सर्वाधिक लोकप्रिय चरित्र होना है जिनके विस्तृत उल्लेख क्रमशः रामायण तथा महाभारत में हैं। इन महाकाव्यों के चरित्रनायक राम और कृष्ण की जनप्रियता के कारण ई० शती के प्रारम्भ या कुछ पूर्व ही इन्हें 'जैन देवमण्डल' में प्रतिष्ठापरक स्थान मिला ।२६ रामायण के तीनों प्रमुख पात्रों राम, लक्ष्मण तथा रावण. ( दशानन ) को जैन देवकुल में लगभग ५वीं शती ई० में ६३ शलाकापुरुषों की सूची में क्रमशः आठवें बलदेव, वासुदेव तथा प्रतिवासुदेव के रूप में सम्मिलित किया गया।२७ पउमचरिय में उल्लेख है कि सर्वप्रथम महावीर ने रामकथा का वर्णन किया जिसे कालान्तर में साधुओं ने धारण किया, विमलसूरि ने उसी कथा को अधिक विस्तार तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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