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प्रस्तावना : १७ ब्रह्मदत्त की जीवनकथा भी दी गयी हैं। नौवें बलभद्र, नारायण व प्रतिनारायण के रूप में क्रमशः बलदेव, कृष्ण और जरासन्ध का भी उल्लेख हुआ है। उत्तरपुराण की कृष्ण कथा हरिवंशपुराण की कथा से नाम व कथानक आदि की दृष्टि से कहीं-कहीं भिन्न है। कृष्णचरित सामान्यतः हिन्दु परम्परा के महाभारत पर आधारित है। उत्तरपुराण में कृष्ण के जन्म, बालक्रीड़ा, कष्ण द्वारा कंस व जरासन्ध के वध तथा उनकी पट्टरानियों के भवान्तर आदि का अत्यन्त रोचक वर्णन किया गया है। द्वारावती नगरी के वर्णन द्वारा गुणभद्र ने जैन स्थापत्य पर भी महत्त्वपूर्ण प्रकाश डाला है।
७३ तथा ७४वें पर्यों में २३वें तथा २४वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ एवं महावीर का जीवन-वृत्त वर्णित है। इनके तपश्चरण के मध्य पूर्वजन्म के बैरी दुष्टात्माओं द्वारा उपस्थित किये गये उपसर्गों३९ ( बाधाओं) का भी इसमें वर्णन हुआ है जो विभिन्न पुरास्थलों के कलापरक सामग्री के अध्ययन की दृष्टि से विशेष महत्त्वपूर्ण है। ____अन्तिम पर्वो ७५ तथा ७६ में राजा चेटक, चेलना, जीवन्धर एवं अन्तिम केवली जम्बूस्वामी आदि के वर्णन के साथ-साथ उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणी काल का भी वर्णन किया गया है जिसके अन्तर्गत विभिन्न कल्कियों, प्रलयकाल तथा भविष्य के ( उत्सर्पिणी काल ) तीर्थंकरों एवं अन्य शलाकापुरुषों के नामोल्लेख तथा महावीर के शिष्य परम्परा आदि का वर्णन हुआ है। महापुराण के रचनाकार-जिनसेन एवं गुणभद्र : जीवन परिचय और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि :
जिनसेन और गुणभद्र दोनों ही आचार्य मूलसंघ के उस 'पंचस्तूप' नामक अन्वय में हुए जो आगे चलकर 'सेनान्वय' या 'सेनसंघ' नाम से प्रसिद्ध हुआ।४० जिनसेन के गुरु वीरसेन और स्वयं जिनसेन ने अपना वंश 'पंचस्तूपान्वय' तथा गुणभद्र ने 'सेनान्वय' लिखा है।' इन्द्रनन्दि ने श्रु तावतार में लिखा है कि जो मुनि पंचस्तूप निवास से आये उनमें से किसी को सेन और किसी को भद्र नाम दिया गया। ___ वंश परम्परा दो प्रकार की होती है : लौकिक और पारमार्थिक । लौकिक वंश का सम्बन्ध योनि से और पारमार्थिक वंश का सम्बन्ध विद्या से होता है ।४२ वस्तुतः जिनसेन और गुणभद्र के लौकिक वंश का निश्चयात्मक रूप में कुछ भी पता नहीं चलता। ये कहाँ के रहने वाले
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