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________________ १६ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन उपरोक्त तीर्थंकरों के तीर्थ में होने वाले विजय, अचल, धर्म, सुप्रभ, सुदर्शन, नन्दिषेण व नन्दिमित्र बलभद्र, त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयंभू, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुण्डरीक एवं दत्त नारायणों तथा इनके प्रतिद्वन्द्वी (शत्रु)अश्वग्रीव, तारक, मधु, मधुसूदन, मधुक्रीड़, निशुम्भ एवं बलीन्द्र प्रतिनारायणों के उल्लेख हैं । प्रत्येक कथानक में नारायण द्वारा प्रतिनारायण के वध और फलस्वरूप पापोदय से नारायण के नरक में जाने का उल्लेख विशेष महत्त्वपूर्ण है। इन्हीं पर्यों में क्रूर व कलहप्रिय स्वभाव वाले नारद एवं विभिन्न हृदों में निवास करने वाली श्री, ह्री, धृति, बुद्धि, कीर्ति एवं लक्ष्मी जैसी इन्द्र की वल्लभा देवियों३७ का उल्लेख जैन धर्म पर ब्राह्मण परम्परा के प्रभाव की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इसमें विभिन्न क्षेत्रों, पर्वत, सरोवरों, नदियों, देशों व नगर के नामों का उल्लेख कर गुणभद्र ने तत्कालीन भौगोलिक दशा पर भी प्रकाश डाला है। ६७ तथा ६८वें पर्यों में २०वें तीर्थंकर मुनिसुव्रत और उनके समकालीन आठवें बलभद्र, नारायण व प्रतिनारायण के रूप में राम, लक्ष्मण और रावण के उल्लेख हैं। रामकथा की परम्परा लगभग पाँचवीं शती ई० में जैन धर्म में प्रविष्ट हुई जिसके फलस्वरूप विमलसूरिकृत पउमचरिय जैसे प्रारंभिक तथा रविषेण कृत पद्मपुराण जैसे परवर्ती जैन ग्रन्थों में उसका विस्तृत उल्लेख किया गया है । जैन परंपरा की रामकथा अधिकांशतः वाल्मीकि रामायण पर आधारित है। उत्तरपुराण के कुछ कथा प्रसंग जैसे सीता जन्म इत्यादि अद्भुत रामायण के अनुरूप हैं। उत्तरपुराण में दशरथ को बनारस का राजा बताना बौद्ध जातक से प्रभावित प्रतीत होता है ।३८ इन पर्यों में राम की कथा के प्रमुख अंश जैसे राम, लक्ष्मण व सीता के जन्म, राम-सीता विवाह, रावण द्वारा सीता-हरण और फलस्वरूप राम-रावण युद्ध, हनुमान के जीवन से सम्बन्धित कथा प्रसंग में उनके पराक्रम एवं विद्याओं तथा लंकादहन आदि का वर्णन तथा लक्ष्मण द्वारा बालि व रावण का वध, राम व लक्ष्मण की दिग्विजय और राज्याभिषेक, लक्ष्मण की मृत्यु से राम के वैराग्य, दीक्षा, कैवल्य व निर्वाण प्राप्ति का सजीव व रोचक वर्णन किया गया है। रामकथा के कई प्रसंग स्पष्टतः ब्राह्मण परम्परा से भिन्न हैं। ६९ से ७२वें पर्यों में २१वें तथा २२वें तीर्थंकर नमिनाथ और नेमिनाथ के जीवनवृत्त के साथ-साथ ११वें और १२वें चक्रवर्ती जयसेन तथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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