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________________ पूर्वपीठिका : १५ हुआ है जो वैदिक परम्परा के प्रभाव की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । आदिपुराण के ४३ से ४७ पर्व तथा संपूर्ण उत्तरपुराण जिनसेन के शिष्य गुणभद्र द्वारा रचित हैं । ४३ से ४७ पर्वों में गुणभद्र द्वारा सर्वप्रथम अपने गुरु जिनसेन के प्रति भक्ति प्रदर्शित की गयी है । तदनन्तर जयकुमार व सुलोचना के विवाह, विरक्ति व जयकुमार के ऋषभदेव के समवसरण में गणधर पद प्राप्त करने, भरत चक्रवर्ती की दीक्षा, कैवल्य प्राप्ति एवं ऋषभदेव के अन्तिम विहार और निर्वाण प्राप्ति का वर्णन किया गया है । इस प्रकार आदिपुराण में केवल प्रथम तीर्थंकर व प्रथम चक्रवर्ती काही वर्णन किया गया है । इसी कारण उनसे सम्बन्धित प्रत्येक घटनाओं का इसमें विस्तार के साथ उल्लेख हुआ है। गुणभद्रकृत उत्तरपुराण में अन्य ६१ शलाकापुरुषों का वर्णन किया गया है । इसी कारण इसमें आदिपुराण की तुलना में कथानक संक्षेप में दिये गये हैं । उत्तरपुराण के सम्पादक पन्नालाल जैन ने उत्तरपुराण के सम्बन्ध में अपने 'विचार व्यक्त करते हुए लिखा है कि इसमें विशिष्ट कथानकों में कितने ही कथानक इतने रोचक ढंग से लिखे गये हैं कि संक्षेप में होते हुए भी वर्णन शैली की मधुरता के कारण ये अत्यन्त रुचिकर हो गये हैं । ३४ उत्तरपुराण के ४८वें पर्व में द्वितीय तीर्थंकर अजितनाथ तथा चक्रवर्ती सगर के पंचकल्याणकों का ( च्यवन, जन्म, दीक्षा, कैवल्य व मोक्ष ) का वर्णन मिलता है । इसी पर्व में पूर्व परम्परा से चली आ रही गंगा की तीर्थता के सम्बन्ध में भी कथा वर्णित है कि जिस समय भगीरथ गंगा नदी के किनारे प्रतिमायोग धारण कर विराजमान थे, उसी समय इन्द्र ने क्षीरसागर के जल से उनके चरणों का अभिषेक किया । तभी से गंगा इस लोक में तीर्थ मानी जानी लगी । ३५ ४९ से ५६ पर्वों में तीसरे से १०वें तीर्थंकर सम्भवनाथ, अभिनन्दन, सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्त एवं शीतलनाथ के पंचकल्याणकों का संक्षेप में उल्लेख हुआ है । इसमें आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभ का कथानक अन्य तीर्थंकरों की तुलना में किंचित् विस्तार के साथ निरूपित है । ५७ से ६६ वें पर्वों में गुणभद्र ने ग्यारहवें से उन्नीसवें तीर्थंकर क्रमशः श्रेयांसनाथ, वासुपूज्य, विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शांतिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ तथा मल्लिनाथ के पंचकल्याणकों का वर्णन किया है । तीर्थंकरों के साथ शलाकापुरुषों की सूची में आने वाले बलभद्र, नारायण व प्रतिनारायण के कथानक भी दिये गये हैं । इनमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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