________________
१४ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन साहित्य, परम्परा, दर्शन और इतिहास से सम्बन्धित नामों में धर्मराज, सुश्रु त, अशोक, निर्गुण, पुष्कर, महाबोधि, सुव्रत, वर्धमान (तीर्थंकर महावीर का नाम ) देवविद्, भवतारक, परमेश्वर, महाप्रभु, महायज्ञ, महाशील, महषि, महात्मा, साध, अचिन्त्य, सर्वयोगीश्वर, योगात्मा, प्रकृति, दक्ष, कामधेनु, प्राकृत, दूरदर्शन, विकालदर्शी, कल्पवृक्ष एवं शत्रुघ्न प्रमुख हैं। प्रस्तुत स्तवन में दिये गये नामों से जैन धर्म के समन्वयात्मक व्यापक दृष्टि की जानकारी मिलती है जिसमें विभिन्न ब्राह्मण एवं बौद्ध देवताओं के नामों की प्रमुखता है।
ऋषभनाथ के उपर्युक्त नामों की व्याख्या के सन्दर्भ में पूर्वकालिक ग्रन्थ पउमचरिय के सन्दर्भ महत्त्वपूर्ण हैं जिसमें ऋषभनाथ एवं अजितनाथ दोनों का विभिन्न ब्राह्मण एवं बौद्ध देवों के नामों से स्मरण किया गया है । इनमें ब्रह्मा, स्वयंभू,चतुर्मुख, पितामह, हिरण्यगर्भ, भानु, त्रिलोचन, शंकर, शिव, महादेव, महेश्वर, ईश्वर, रुद्र, विष्णु, अनन्तनारायण एवं स्वयंबद्ध के नाम मिलते हैं जिनका महापुराण में और अधिक विस्तार किया गया है।३३
२६ से लेक र ३४ पर्यों में भरत के चक्ररत्न के प्रकट होने, उनकी सेना के विभिन्न अंगों एवं अस्त्र-शस्त्रों के प्रकार तथा उनके दिग्विजय का विस्तार के साथ वर्णन हुआ है। इसमें नवनिधि एवं १४ रत्नों का वर्णन भी हुआ है। देवगढ़ की भरत चक्रवर्ती की मूर्तियों में नवनिधि एवं १४ रत्नों के अंकन की दृष्टि से यह उल्लेख विशेष महत्त्व का है। ___३४ से लेकर ३६ पर्यों में भरत और बाहुबली के मध्य नेत्र, जल और मल्ल-युद्ध और अन्त में भरत द्वारा बाहुबली पर चक्ररत्न चलाये जाने से दुःखी होकर बाहुबली के वन में जाकर दीक्षा धारण करने और तपश्चर्या एवं मोक्ष प्राप्ति के विस्तृत उल्लेख हैं। श्वेताम्बर कला केन्द्र विमलवसहो ( देलवाड़ा, राजस्थान ) एवं कुंभारिया (शांतिनाथ मन्दिर, ११वीं शती ई०, गुजरात ) में भरत-बाहुबली युद्ध के और देवगढ़, खजुराहो, एलोरा, मथुरा, बादामी, अयहोल एवं श्रवणबेलगोल जैसे दिगम्बर कला केन्द्रों पर बाहुबली की स्वतन्त्र मूर्तियों के कई उदाहरण मिले हैं जिनके निरूपण में महापुराण के विवरणों का पालन हुआ है।
३७ से ४२ पर्यों में भरत द्वारा ब्राह्मण वर्ण की स्थापना एवं ब्राह्मणोचित गर्भान्वय, दीक्षान्वय तथा कर्तन्वय आदि क्रियाओं एवं षोडश संस्कारों और हवन के योग्य मंत्रों आदि का विस्तार के साथ वर्णन
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org