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________________ पूर्वपीठिका : १३ आधारित सामाजिक व्यवस्था पर प्रकाश डालता है । २" कलापरक अध्ययन की दृष्टि से वृषभनाथ द्वारा शिल्प की प्रथम शिक्षा का सन्दर्भ विशेष महत्त्वपूर्ण है । १७ वें पर्व में नृत्यरत नीलांजना अप्सरा की मृत्यु से ऋषभदेव के मन में नश्वर संसार के प्रति विरक्ति का भाव आने एवं दीक्षा लेने का उल्लेख है । २९ ज्ञातव्य है कि कुषाणकाल में ही नीलांजना के नृत्य शिल्पांकित किया गया है जिसका उदाहरण मथुरा के कंकाली टीला से मिला है ( राज्य संग्रहालय, लखनऊ, क्रमांक जे० ३५४ ) । १८वें से २० वें पर्व के अन्तर्गत जिनसेन ने ऋषभदेव के ६ माह के योग धारण करने, हस्तिनापुर के महाराज श्रेयांश के यहाँ इक्षुरस का आहार लेने एवं तपश्चरण आदि का वर्णन किया है । १९वें पर्व में धरन्द्र द्वारा नमि-विनमि को विभिन्न विद्याएँ प्रदान करने तथा विजयार्ध - पर्वत की शोभा का सुन्दर वर्णन हुआ है । २१ से २३ पर्वों के अन्तर्गत गौतम गणधर द्वारा ध्यान के विभिन्न भेदों, ऋषभदेव के कैवल्य प्राप्ति व देवों द्वारा उनके प्रथम उपदेश के लिये समवसरण निर्माण व उसके स्वरूप का विस्तार के साथ वर्णन किया गया है । इन पर्वों में ऋषभ - देव के समवसरण का वर्णन जैन स्थापत्य के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ देता है | 39 २४वें और २५ वें पर्वों में भरत द्वारा ऋषभदेव की १०८ व सौधर्म इन्द्र द्वारा १००८ नामों से स्तवन तथा अष्टद्रव्य आदि से पूजन करने एवं उनके विहार की विस्तृत चर्चा हुई है । ऋषभनाथ के १००८ नामों में सर्वाधिक नाम ब्राह्मण धर्म के त्रिदेवों तथा कुछ नाम अन्य ब्राह्मण देवों से सम्बन्धित हैं । साथ ही बौद्ध धर्म और गुणपरक एवं भारतीय इतिहास तथा परम्परा से सम्बन्धित कई नाम भी मिलते हैं । ब्राह्मण त्रिदेवों से सम्बन्धित नामों में स्वयंभू, शंभु, त्रिपुरारि, त्रिलोचन, त्रिनेत्र, शंकर, शिव, ईशान, महेश्वर, कामारि, महादेव, महायोगीश्वर, भूतनाथ, सद्योजात. मृत्युंजय, धाता, विश्वकर्मा, ब्रह्मा, शास्ता, पितामह, चतुरानन, चतुर्मुख, चतुर्वक्त, हिरण्यगर्भ, लक्ष्मीपति, जगन्नाथ, श्रीपति एवं विश्वमूर्ति मुख्य हैं । अन्य ब्राह्मण देवों में सहस्राक्ष, गणाधिप, महेन्द्र, धीमान, सूर्य एवं आदित्य के नाम प्रमुख हैं । बौद्ध देवकुल या धर्म से संबंधित नामों में अक्षोभ्य, बुद्ध, सिद्धार्थ, स्वयंबुद्ध, धर्मचक्री, प्रज्ञापारमित, बहुश्रुत ( अशोक के अभिलेख ) तथा कुछ तीर्थंकरों और भारतीय-: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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