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१२ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन
महापुराण में कुल १९२०७ श्लोक हैं जिनमें से ११४२९ आदिपुराण में और ७७७८ उत्तरपुराण में हैं । महापुराण का सम्पूर्ण आख्यान महाराज श्रेणिक के प्रश्नों के उत्तर के रूप में गौतम गणधर के मुख से प्रसूत हुआ है। संक्षेप में आदिपुराण व उत्तरपुराण की विषयवस्तु ७७ पर्यों में इस प्रकार है
आदिपुराण के प्रथम दो पर्व प्रस्तावना के रूप में हैं जिनमें जिनसेन ने कवि, महाकवि, काव्य, महाकाव्य तथा महापुराण की परिभाषा देते हुए आदिपुराण की ऐतिहासिकता बतलायी है। तीसरे पर्व में उत्सर्पिणी तथा अवसर्पिणी काल, भोगभूमि तथा कुलकरों आदि की उत्पत्ति एवं नामावली का वर्णन हुआ है। चौथे पर्व में अधोलोक, तिर्यक्लोक और ऊर्ध्वलोक के भेद से लोक के तीन भेदों का वर्णन किया गया है।२३ ५वें से ११वें पर्यों में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के दस पूर्वभवों का विस्तार के साथ वर्णन है।
१२ से १५ पर्यों में ऋषभदेव के च्यवन, जन्म, बाल्यावस्था, यौवन, विवाह तथा भरत चक्रवर्ती के जन्म का सुन्दर व विशद् वर्णन हुआ है। बारहवें पर्व में ऋषभदेव के पिता व अंतिम कुलकर नाभिराज एवं माता मरुदेवी के सौन्दर्य व इन्द्र द्वारा निर्मित अयोध्या नगरी की शोभा का सुन्दर वर्णन मिलता है जो जैन स्थापत्य पर प्रकाश डालता है ।२४ इसी पर्व में मरुदेवी द्वारा देखे गये १६ शुभस्वप्नों का भी उल्लेख हुआ है जो परम्परागत मांगलिक स्वप्नों के महत्त्व पर प्रकाश डालता है। ज्ञातव्य है कि खजुराहो, देवगढ़ तथा अन्य सभी दिगम्बर स्थलों पर १६ मांगलिक स्वप्नों का शिल्पांकन हुआ है। इसमें श्री, ह्री, धृति, कीर्ति, बद्धि एवं लक्ष्मी जैसी देवियों एवं इन्द्र आदि देवताओं का भी उल्लेख मिलता है ।२६ १४वें पर्व में इन्द्र द्वारा किये गये ताण्डव नृत्य तथा विभिन्न किन्नर देवियों व अप्सराओं द्वारा किये गये अन्य नृत्यों एवं विभिन्न वाद्यों के वादन से सन्दर्भित उल्लेख हैं जो तत्कालीन नृत्य व संगीत जैसे ललितकला और ज्ञान की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं ।२७ इन्द्र के ताण्डव नृत्य का सन्दर्भ स्पष्टतः नटेश शिव के नृत्य से संबंधित है।
१६वें पर्व में ऋषभदेव की रानियों से बाहुबली आदि अन्य पुत्रों एवं ब्राह्मी तथा सुन्दरी नामक पुत्रियों के जन्म तथा ऋषभदेव द्वारा असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, विद्या व शिल्प इन छः आजीविकाओं एवं क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्णों की स्थापना का उल्लेख पूर्व परम्परा पर
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