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________________ उपसंहार : २५५ में स्वयंभू, शंभु, शंकर, सद्योजात, जगन्नाथ, लक्ष्मीपति, त्रिनेत्र, जितमन्मथ, त्रिपुरारि, त्रिलोचन, धाता, ब्रह्मा, शिव, ईशान, हिरण्यगर्भ, विश्वमूर्ति, भूतनाथ, विधाता, मृत्युञ्जय, पितामह, महेश्वर, महादेव, कामारि एवं चतुरानन मुख्य हैं । अन्य नामों में इन्द्र ( महेन्द्र, सहस्राक्ष ), सूर्य (आदित्य), कुबेर, वामन एवं राम, कृष्ण, इन्द्राणी एवं विन्ध्यवासिनी देवी उल्लेखनीय हैं। साथ ही बौद्ध देवकुल से सम्बन्धित बुद्ध, सिद्धार्थ, स्वयंबुद्ध तथा अक्षोभ्य जैसे नाम भी महत्त्वपूर्ण हैं । भगीरथ और गंगा तथा शिव के स्थान पर इन्द्र के ताण्डव नृत्य के सन्दर्भ भी ब्राह्मण परम्परा के अनुकरण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं । इसी प्रकार सोलह संस्कारों तथा वर्णों की चर्चा भी सांस्कृतिक अध्ययन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है । महापुराण की रचना राष्ट्रकूट शासक अमोघवर्ष - प्रथम एवं कृष्णद्वितीय के शासनकाल और क्षेत्र में हुई, अतः उसकी कलापरक सामग्री का राष्ट्रकूट कला केन्द्र एलोरा की जैन गुफाओं ( सं० ३०-३४ ) की मूर्तियों की शास्त्रीय और साहित्यिक पृष्ठभूमि की दृष्टि से विशेष महत्त्व है । ज्ञातव्य है कि महापुराण एवं एलोरा की जैन गुफायें समकालीन ( ९वीं - १०वीं शती ई० ) और दिगम्बर परम्परा से सम्बद्ध हैं जिससे महापुराण की कलापरक सामग्री के एलोरा की जैन गुफाओं की मूर्तियों से तुलना का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। एलोरा की बाहुबली मूर्तियों में उनके शरीर से लिपटी माधवी एवं सर्प, वृश्चिकू, छिपकली तथा मृग जैसे जीव-जन्तुओं का शरीर पर या समीप ही विचरण करते हुए और पार्श्वनाथ की मूर्तियों में शंबर के विस्तृत उपसर्गों के अंकन स्पष्टतः महापुराण के उल्लेखों से निर्दिष्ट रहे हैं । महापुराण में ६३ शलाकापुरुषों के अन्तर्गत् २४ तीर्थंकरों की सूची में - ऋषभनाथ ( या आदिनाथ ), अजितनाथ, संभवनाथ, अभिनन्दन, सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ, सुविधिनाथ ( पुष्पदन्त ), शीतलनाथ, श्रेयांशनाथ, वासुपूज्य, विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शांतिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रत, नमिनाथ, नेमि - नाथ ( या अरिष्टनेमि ), पार्श्वनाथ एवं महावीर ( या वर्धमान ); १२ चक्रवर्तियों में- भरत, सगर ( या सागर), मधवा, सनत्कुमार, शान्ति, कुन्थु, अर, सुभौम ( या सुभूम ) पद्म, हरिषेण, जयसेन तथा ब्रह्मदत्त, ९ बलभद्रों में- विजय ( या अचल ), अचल ( या विजय ), धर्म ( या भद्र), सुप्रभ, सुदर्शन, नन्दिषेण ( या आनन्द ), नन्दिमित्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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