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________________ नवम अध्याय उपसंहार पुराणों की रचना ब्राह्मण एवं जैन दोनों ही धर्मों में प्रचुर संख्या में की गयी। ये पुराण वस्तुतः भारतीय संस्कृति के विश्वकोश हैं जिनमें विभिन्न कथाओं के माध्यम से धार्मिक जीवन के विविध पक्षों के साथ ही सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और कलापरक विषयों की विस्तारपूर्वक चर्चा मिलती है। श्वेताम्बर परम्परा में ऐसे ग्रन्थों को चरित या चरित्र तथा दिगम्बर परम्परा में पुराण कहा गया है। लगभग पाँचवीं शती ई० से १०वीं शती ई० के मध्य जिन प्रारम्भिक जैन पुराणों को रचना की गयी उनमें विमलसूरिकृत पउमचरिय, रविष्णकृत पद्मपुराण, जिनसेनकृत हरिवंशपुराण, जिनसेन एवं गुणभद्रकृत संस्कृत महापुराण तथा पुष्पदन्तकृत अपभ्रंश महापुराण सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं । __ जैन पुराणों में महापुराण सर्वाधिक लोकप्रिय था जो आदिपुराण और उत्तरपुराण इन दो खण्डों में विभक्त है। आदिपुराण की रचना जिनसेन ने लगभग नवीं शती ई० के मध्य और उत्तरपुराण की रचना उनके शिष्य गुणभद्र ने नवीं शती ई० के अंत या १०वों शती ई० के प्रारम्भ में की थी। महापुराण में जैन देवकूल के २४ तीर्थंकरों तथा १२ चक्रवर्ती, ९ बलभद्र, ९ नारायण और ९ प्रतिनारायण सहित कुल तिरसठ शलाकापुरुषों ( श्रेष्ठजनों ) के जीवनचरित का विस्तारपूर्वक निरूपण हुआ है। कलापरक अध्ययन की दृष्टि से आदिपुराण एवं उत्तरपुराण अर्थात् महापुराण (दिगम्बर परम्परा ) की सामग्री का विशेष महत्त्व है क्योंकि उनका रचनाकाल ( ९वीं-१०वीं शती ई० ) तीर्थंकरों सहित अन्य शलाकापुरुषों तथा जैन देवों के स्वरूप या लक्षण निर्धारण का काल था। इन ग्रन्थों को रचना के बाद ही श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा में विभिन्न शिल्पशास्त्रीय ग्रन्थों की रचना हुई जिनमें जैन आराध्यदेवों के प्रतिमालक्षण का विस्तारपूर्वक निरूपण किया गया। धार्मिक समन्वय की भावात्मक अभिव्यक्ति की दृष्टि से ऋषभनाथ तीर्थंकर के १००८ नामों से स्तवन के सन्दर्भ में शिव, ब्रह्मा, विष्णु एवं बुद्धादि देवों के अनेक नामों का उल्लेख अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इन नामों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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