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________________ २३६ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन है ।" यह डेढ़ हाथ लम्बा भेरि के समान वाद्य था जो पतले या मोटे चमड़े से मढ़ा जाता था तथा लकड़ी अथवा हाथ से बजाया जाता था । (६) पणव २६६ : यह मृदंग के समान प्राचीन वाद्य है । यह १६ अंगुल लम्बा, भीतर की ओर मध्य भाग दबा, आठ अंगुल विस्तारित तथा दोनों ओर से पाँच अंगुल मुख वाला वाद्य था जिसके काष्ठ की मोटाई आधे अंगूठे के बराबर होती थी । इसका भीतरी भाग चार अंगुल व्यास वाला खोखला होता था । इसके दोनों मुख कोमल चमड़े से मढ़े जाते थे तथा चमड़े को सुतलो से कसा जाता था । २६७ इसे प्राचीन व आधुनिक काल में हुडुक नाम से संबोधित किया गया जबकि मध्यकाल में इसे आवाज नाम दिया गया था । २६० २६९ (७) पुष्कर २६ : आदिपुराण में मृदंग के वाले वाद्य के रूप में इसका उल्लेख हुआ है इनकी समता की जा सकती है । । (८) भेरी २७० : यह वाद्य भी मृदंग के समान, धातुनिर्मित एवं लगभग दो हाथ लम्बा और द्विमुखी होता था । इसके मुख का व्यास एक हाथ का और चमड़े से मढ़ा होता था । कांसे के कड़े में डोरी डालकर यह कसा जाता था । इसे दाहिनी ओर लकड़ी से तथा बायीं ओर हाथ से बजाते थे | २७१ समान गम्भीर शब्द करने आधुनिक पखावज से भी (९) मृदंग २७२ : प्राचीनकाल से ही मृदंग वाद्य का उल्लेख विभिन्न ग्रन्थों में मिलता है । रामायण एवं कालिदास के ग्रन्थों में तथा भरत के काल में मृदंग का वर्णन उपलब्ध है । २७३ इसके दोनों ओर के मुख चमड़े से मढ़े जाते थे तथा इसके मध्य का भाग दोनों किनारों की अपेक्षा अधिक उभरा हुआ होता था । आधुनिक युग में संगीत में विभिन्न वाद्ययन्त्रों के मध्य मृदंग का महत्वपूर्ण स्थान है । (१०) मुरज २७४ : मुरज मृदंग का ही एक अन्य नाम है जिसे गीत के साथ बजाया जाता था । (ग) सुषिर - वाद्य : मुँह से फूँककर ध्वनि निकलने वाले वाद्यों को जैन पुराणों में सुषिर वाद्य के अन्तर्गत रखा गया है। सुषिर वाद्यों का वर्णन निम्नवत् है— २७५ (१) काहल र : इसका निर्माण सोना, चाँदी एवं ताँबा से होता था । यह भीतर से खोखला तथा तीन हाथ लम्बा होता था । धतूरे के के समान इसकी मुखाकृति होती थी । इसके मध्य में दो छिद्र होते थे और फूँकने पर इससे ध्वनि निकलती थी । २७६ फूल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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