SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 250
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सांस्कृतिक जीवन : २३७ (२) तूर्य२७७ : यह लगभग डेढ़ हाथ लम्बा वाद्य था तथा मुख की ओर इसका आकार खिले हुए धतूरे के पूष्प के सदृश्य होता था। इसकी ध्वनि आधुनिक शहनाई के समान थी। दक्षिण भारत के मन्दिरों में उत्सव, विवाह एवं मांगलिक अवसरों पर यह बजाया जाता है ।२७८ ___ (३) वंश२७९ ( बांसुरी ) : जैन पुराणों में अनेक स्थलों पर अन्य वाद्यों के साथ इसके बजाये जाने का उल्लेख है। इसमें भी आधुनिक बांसुरी की तरह मुंह से फंकने पर ध्वनि होती थी। (४) वेणु२८० : बाँसुरी के अर्थ में ही इसका भी प्रयोग हुआ है। यह बाँस द्वारा निर्मित होता था। (५) शंख२८१ : जैन पुराणों में जन्मोत्सव, धार्मिक कृत्यों तथा युद्ध आदि अवसरों पर शंख के बजाये जाने का उल्लेख मिलता है । नेमिनाथ का लांछन भी शंख ही है । (घ) धन-वाध : जैन पुराणों में कांसे से निर्मित झांझ-मजीरा आदि को धन वाद्य की श्रेणी में रखा गया है। इनकी उत्पत्ति तालवाद्यों से हई है ।२८२ महापुराण में धन वाद्यों में निम्नलिखित वाद्यों का वर्णन उपलब्ध है (१) घण्टा२८3 : कांसे से निर्मित घण्टे का प्रयोग मन्दिर या देवीदेवताओं की पूजा-अर्चना में होता था। इसका स्वरूप कतिपय परिवर्तन के बाद भी वर्तमान घण्टे के ही समान था। (२) ताल २८४ : काँसे द्वारा निर्मित यह वाद्य धन वाद्यों में प्रमुख था जिसका आकार वर्तमान मंजीरे से बड़ा होता था। इसके मध्य में डोरी लगी होती थी तथा यह दोनों हाथ से बजाया जाता था। (३) झांझ२८५ : जैन पुराणों में अन्य वाद्ययन्त्रों के साथ झांझ के भी बजाये जाने का उल्लेख हुआ है। उपयुक्त वाद्ययन्त्रों का शिल्पांकन एलोरा, कंभारिया, खजुराहो, देवगढ़, देलवाड़ा के लोक जीवन या सामान्य गायन-वादन से सम्बन्धित दृश्यों में देखा जा सकता है। नृत्य : । प्राचीनकाल से ही समाज के सभी वर्गों में नृत्य के प्रति अभिरुचि मिलती है। विभिन्न भावों पर आधारित ताल और लय के अनुरूप अंगों के संचालन की प्रक्रिया को ही नृत्य कहा जा सकता है। उत्सव, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy