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________________ सांस्कृतिक जीवन : २३५ मिलता-जुलता तथा उसका अत्यधिक विकसित रूप है। इसका प्रयोग संगीत के लिए लिए किया जाता था।२४९ (ख) तंत्री तंत्री वाद्य का उल्लेख हरिवंशपुराण तथा पद्मपुराण में मिलता है ।२५० यह एक विशेष प्रकार की वीणा थी जिसमें तारों की संख्या के अनुसार इसका नामकरण होता था जैसे एक तार की वीणा एकतन्त्री तथा तीन तार की वीणा त्रितंत्री वीणा कहलाती थी। त्रितंत्री वीणा का विकास तंबूरा और सितार के संयुक्त रूप से हुआ।२५१ (ग) सुघोषा : हरिवंशपुराण में १७ तार की सुघोषा नामक वीणा को दोषमुक्त बताया गया है ।२५२ उत्तरपुराण में भी इसे उत्तम वीणा कहा गया है ।२५3 (ख) अवनद्धवाध : जैन पुराणों में चमड़े से मढ़े हुए वाद्य के उदाहरण मृदंग आदि को अवनद्ध नाम से अभिहित किया गया है ।२५४ अवनद्ध वाद्य वितत वाद्य का ही बोधक है । इस प्रकार के वाद्यों की संख्या एक सौ से भी अधिक थी ।२५५ जैन पुराणों में निम्नलिखित अवनद्ध वाद्यों का वर्णन प्राप्य है। (१) आनक २५६ : इसकी ध्वनि-गम्भोर होती थी तथा इसको तुलना आधुनिक नगाड़े या नौबत से की जा सकती है। (२) छल्लरी२५७ : यह चमड़े से मढ़ा होता था तथा बायें हाथ में अंगूठे से लटका कर दाहिने हाथ के शंकु द्वारा इसका वादन होता था। इसकी तुलना आधुनिक खंजरी, दायस, चंग आदि वाद्यों से की जा सकती है ।२५६ (३) ढक्का : पद्मपुराण में इसका उल्लेख है ।२५९ ढवस के सदृश इसका आकार होता था। इसे बायीं बगल में दबाकर दाहिने हाथ से डंडे से बजाते थे । इसे धौंसा नाम से भी सम्बोधित किया गया है ।२६० (४) दुन्दुभि२६१ : इसका अर्थ हिन्दी शब्दसागर में नगाड़ा और धौंसा है ।२६२ यह तबले की तरह दो नगों से निर्मित होता था। इसे द्वयशंक्वाकार लकड़ियों से बजाया जाता था। इससे गम्भीर व दूर तक प्रसारित होने वाली ध्वनि निकलती थी। इसका प्रयोग युद्ध और शुभ अवसरों पर होता था । शहनाई के साथ वादित होने पर इसे नौबत कहते हैं । २५3 (५) पटह२६४ : हिन्दी शब्द सागर में पटह का अर्थ नगाड़ा और द्वन्दुभि है, किन्तु संगोत-पारिजात के अनुसार पटह का तात्पर्य ढोलक से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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