SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३४ : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन तथा ८४ प्रकार के तानों का उल्लेख हैं ।२४० आदिपुराण में जन्ममहोत्सव व राज्याभिषेक आदि अवसरों पर वार स्त्रियों व किन्नरी देवियों द्वारा मंगलगान गाने के उल्लेख हैं ।२४१ इस सन्दर्भ से स्पष्ट है कि गायन में स्त्रियों का एक विशेष वर्ग ही निपुण होता था। वाद्य संगीत : संगीत में वाद्य संगीत और विभिन्न वाद्ययन्त्रों का भी महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । वाद्यसंगीत में नृत्य व गीत की भाँति किसी अन्य साधन की सहायता की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। जैन ग्रन्थों में वाद्यों को चार प्रमुख वर्गों तत, वितत, घन तथा सुषिर में विभक्त किया गया है ।२४२ जनेतर ग्रन्थों में भी वाद्य के तत्, अवनद्ध, धन तथा सुषिर इन्हीं चार भेदों का उल्लेख हुआ है। (क) तत्वाध: तार से बजने वाले वाद्य ( वीणा आदि ) तत् कहलाते हैं । हरिवंशपराण के अनुसार तत् नामक वादित्र कर्णेन्द्रिय को तृप्त करने वाला होने से प्राणियों के लिये अधिक प्रीति उपजाने वाला तथा गन्धर्व शरीर के साथ सम्बद्ध होने से गन्धर्व नाम से प्रसिद्ध है ।२४३ गान्धर्व की उत्पत्ति में वीणा, वंश और गान ये तीन कारण है तथा स्वरगत, तालगत और पदगत के भेद से वह तीन प्रकार का माना गया है ।२४४ जैनपूराणों से प्राप्त प्रामग्री के आधार पर तत वाद्य के अन्तर्गत निम्नलिखित वाद्य आते हैं (१) तुणव : आदिपुराण में अन्य वाद्यों के साथ अनेक अवसरों पर तुणव के वादन का उल्लेख हुआ है ।२४५ इसे सितार के रूप में प्रयुक्त किया जाता था। - (२) वीणा : आदिपुराण में वीणा के स्वर को श्रेष्ठ माना गया है। इसके तारों को हाथ की अंगुलियों से बजाये जाने का उल्लेख है ।२४॥ वीणा वादन के साथ गायन का भी उल्लेख हुआ है। पाण्डवपुराण में घोषा, सुघोषा, महाघोषा एवं घोषवती वीणाओं का उल्लेख है। जैनपुराणों में वीणा से सम्बन्धित निम्नलिखित वाद्यों का उल्लेख हुआ है। (क) अलाबु : आदिपुराण में अलाबु का उल्लेख मिलता है ।२४७ आधुनिक वीणाओं के समान उस समय भी सम्भवतः वीणा के लिये अलाबु ( लौकी का तुम्बा ) प्रयुक्त होता था ।२४८ अलाबु सारंगी से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002115
Book TitleJain Mahapurana Kalaparak Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumud Giri
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy