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२३२ : जैन महापुराण : कलापरक अध्मयन
(८) कुंकुम २१९ : शारीरिक स्वास्थ्य, सौन्दर्य एवं सुगन्धि के लिये कुंकुम का प्रयोग स्त्री व पुरुष दोनों ही किया करते थे ।
(९) अवलेप २० : विभिन्न सुगन्धित द्रव्यों द्वारा अवलेप के अनेक उदाहरण जैन पुराणों में मिलते हैं । २२१ कालिदास ने शारीरिक सौन्दर्य व कान्ति की वृद्धि के लिये स्त्री व पुरुष दोनों द्वारा चन्दन, केशर, शुक्लागुरु, कालागुरु, प्रियंगु, कालेयक, कस्तूरी तथा कुमकुम मिश्रित अवलेप लगाने का उल्लेख किया है । २२२ शीतलता और सौन्दर्य के लिये मुख्यतः चन्दन के अवलेप का ही प्रयोग किया जाता था । हेमन्त और शिशिर को छोड़कर अन्य सभी ऋतुओं में स्त्रियाँ चन्दन का ही प्रयोग करती थीं । हेमन्त में केशर तथा ग्रीष्म ऋतु में चंदन के द्रव्य के अवलेप का उदाहरण आदिपुराण में स्पष्टत: है । २२३ शिशुओं के शरीर पर भी गाढ़े सुगन्धित द्रव्यों का विलेपन किया जाता था । २२४ आदिपुराण में एक स्थल पर ऐसे एक सुगन्धित अवलेपन का उल्लेख आया है जिसकी सुगन्धि से भँवरे उस स्त्री के हाथ पर आकर गुञ्जार करने लगे ।२२५ सम्भवतः इस प्रकार के अवलेपन के लिये अंगराग को कस्तूरी में बसाकर सुगन्धित कर लिगा जाता था और उसके बाद शरीर पर उसका विलेपन किया जाता था । २२३
(१०) तेल २२७ : स्वास्थ्य व सौन्दर्यवृद्धि के लिये स्त्री व पुरुष सुगन्धित तेल का प्रयोग अपने शरीर तथा केशों में करते थे । अधिकांशतः स्नान से पूर्व सुगन्धित तेल का मर्दन शरीर पर किया
जाता था ।
(११) सुगन्धित चूर्ण २२८ : आधुनिक युग के समान ही उस समय भी विभिन्न प्रकार के सुगन्धित चूर्ण का प्रयोग किया जाता था । पउमचरिय में अगरु, तुरुष्क व चन्दन की सुगन्धि तथा गोशीर्ष चन्दन और कालागुरु से सुगंधित धूप बनाने का उल्लेख है । २२९ कालिदास ने मुख, केश तथा शरीर के अन्य भागों पर प्रसवरज, अम्बुज रेणु, केसरचूर्ण तथा केतकरज जैसे तरह-तरह के चूर्ण लगाये जाने का उल्लेख किया है । २३० आदिपुराण में वस्त्रों को सुवासित करने के लिये पटवास चूर्ण के प्रयोग का सन्दर्भ है | २३१
(१२) पुष्पप्रसाधन : सौन्दर्य प्रसाधन में प्राचीनकाल से ही पुष्पों व पुष्प मालाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । शृंगार के लिये मुख्य रूप से मन्दार, कमल, कुन्द, कुर्बक, शिरीष, कदम्ब, बकुल तथा मालती के पुष्पों का प्रयोग किया जाता था । दक्षिण भारत में आज भी पुष्प स्त्रियों
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