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सांस्कृतिक जीवन : २३१
जैन पुराणों तथा जैनेत्तर ग्रन्थों में निम्नलिखित प्रसाधन सामग्री तथा उनके उपयोग का उल्लेख मिलता है ।
(१) स्नान : स्नान भारतीय शृंगार का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष रहा | पउमचरिय२०४ तथा भगवतीसूत्र २०५ जैसे आगम जैन ग्रन्थों में स्नान-भूमि के लिये एक विशेष स्थान का उल्लेख मिलता है । स्नान के जल को विभिन्न प्रकार के सुगन्धित द्रव्य तथा पुष्प आदि से सुवासित किया जाता था । २०६ आदिपुराण २०७ में मज्जन नामक स्नान सामग्री का उल्लेख है जिसके प्रयोग से शारीरिक स्वच्छता, स्फूर्ति एवं कांति प्राप्त होती थी ।
(२) तिलक २०८ : स्त्री व पुरुष दोनों में तिलक का प्रचलन था । मुख सौन्दर्य के लिये तिलक का विशेष महत्त्व था । स्त्रियाँ प्रायः लाल रंग का तिलक लगातीं थीं । चंदन के अतिरिक्त गोरोचन, लालरंग के गेरु तथा काले अगरु का भी प्रयोग तिलक के लिए किया जाता था । २०९
(३) अञ्जन २१ २१० : स्त्री व पुरुष दोनों ही आँखों की रक्षा व सौन्दर्य वृद्धि के लिये अञ्जन ( काजल ) का प्रयोग करते थे । कुमारसम्भव में अञ्जन लगाती हुई स्त्री का उल्लेख है । २११
(४) भौंह का शृंगार २१२ : आधुनिक युग की तरह उस समय भी स्त्रियाँ भौंहों का संस्कार करके उन्हें सुसज्जित करती थीं ।
(५) पत्ररचना [२१३ : स्त्री व पुरुष दोनों ही अपने कपोलों पर गोरोचन, चंदन व अंगराग से पत्ररचना किया करते थे । पत्ररचना के लिये काले, श्वेत और लाल रंगों का प्रयोग होता था । २१४ इसके प्रारम्भिक उदाहरण भरहुत एवं साँची की मूर्तियों में देखे जा सकते हैं ।
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. (६) ओष्ठराग २१५ : स्त्री व पुरुष दोनों ही अपने ओष्ठों को रंगते थे परिणामस्वरूप उनके अधर रक्तवर्णीय होते थे । वे पान के रस के संसर्ग से और भी अधिक लाल हो जाते थे । २१६ कालिदास ने ओष्ठराग को केवल लालरंग का बताया है जिसके लिये अलक्तक का प्रयोग किया जाता था । २१७
(७) महावर " : महावर चरणों में लगाया जाता था | महावर के लिये अलक्तक, रागलेखा, पादराग लाक्षारस, रागरेखाविन्यास, चरणराग, द्रवराग तथा निर्मलराग आदि शब्दों का प्रयोग मिलता है । स्त्रियाँ अपने पैरों की सुन्दरता के लिये अलक्तक या लाक्षारस का प्रयोग करती थीं ।
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