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३३० : जैन महापुराण : कलापरक अध्ययन माला से बाँध लिया जाता था। इसके अन्दर भी पुष्पों की माला गूंथी जाती थी ।२०० जूड़ा वेणी द्वारा न बनाकर सम्भवतः खुले केशों द्वारा बनाया जाता था । कभी यह जूड़ा वर्तमान जूड़े की भाँति पीछे कन्धे पर
और कभी मस्तक के मध्य में स्थित रहता था। इसका सुन्दर अंकन हिंगलाजगढ़ से प्राप्त तथा वर्तमान में इन्दौर संग्रहालय में सुरक्षित लगभग १०वीं-११वीं शती ई० की अम्बिका तथा १२वीं शती ई० की विमलवसही की अम्बिका मूर्तियों में देखा जा सकता है। नृत्यांगनाओं में भी इस केश शैली का प्रचलन था ।२०१
सीमंत ( मांग ) भी स्त्रियों की केश-सज्जा का एक आवश्यक अंग था। इसके द्वारा वे अपने केशों को दो भागों में विभक्त करती थीं। आदिपुराण में स्त्रियों द्वारा अपने सीमंत को परागसहित कमलों की रज से भरने का उल्लेख है ।२०२ सीमंत को पुष्पों द्वारा भी सजाया जाता था।
उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि केश-सज्जा के विभिन्न प्रकार स्त्रियों में ही प्रचलित थे । केश-सज्जा की विविध शैलियों के साथ-साथ उन्हें अलंकृत करने का शौक भी स्त्रियों में ही था, जो लम्बे केश रखती थीं। पुरुषों में छोटे केश एवं उनके सामान्य सज्जा का ही प्रचलन था। उल्लेखनीय है कि केश-विन्यास की महापुराण में वणित शैलियाँ वस्तुतः गुप्तकाल से ही चली आ रही थीं।
प्रसाधन:
मानव की सहज शृंगार प्रवृत्ति की अभिव्यक्ति के अन्य माध्यमों ( वस्त्र, आभूषण, केश-सज्जा) को अपेक्षा प्रसाधन सामग्री का सदैव अधिक महत्त्व रहा है । वैयक्तिक-शृंगार में प्रसाधन सामग्री का उपयोग प्राचीनकाल से विभिन्न रूपों में किया जाता रहा है। संभवतः शृंगारसामग्री के विकास क्रम में प्रसाधन सामग्री निश्चित रूप से पहले प्रचलन में आयी । वस्त्राभूषणों के पूर्व ही मनुष्य प्रसाधन सामग्री से भलीभाँति परिचित हो चुका था। अपने प्रतिदिन के शृंगार में सबसे पहले उसे अंगराग, चन्दन, अञ्जन तथा सुगन्धि जैसे प्रसाधन-सामग्री की आवश्यकता पड़ती थी। इसके बाद ही वह अन्य शृंगार सामग्री का प्रयोग करता था। प्रसाधन की विभिन्न सामग्रियों का शरीर के विभिन्न अंगों के साथ तादात्म्य था जबकि श्रृंगार के अन्य माध्यम केवल बाह्य रूप से ही शरीर को सज्जित करते थे ।२०३
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